क्या अमेरिका में 1984 के सिख नरसंहार को मिलेगा औपचारिक मान्यता? जानें सांसदों के प्रस्ताव के बारे में
संयुक्त राज्य अमेरिका में ऐतिहासिक प्रस्ताव
नई दिल्ली: अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में चार सांसदों ने 1984 के सिख विरोधी दंगों को नरसंहार के रूप में मान्यता देने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव का नेतृत्व रिपब्लिकन सांसद डेविड वलाडाओ कर रहे हैं, जिन्हें तीन अन्य सांसदों का समर्थन प्राप्त है।
प्रस्ताव की मुख्य बातें
इस प्रस्ताव में कहा गया है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देशभर में सिखों पर हुए हमलों को 1984 सिख नरसंहार के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। इसके साथ ही, सभी अपराधियों को न्याय के दायरे में लाने की मांग की गई है, चाहे वे किसी भी पद पर हों।
सिख संगठनों का समर्थन
अमेरिका में कई प्रमुख सिख संगठनों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिनमें सिख कोएलिशन, अमेरिकन गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी, सिख अमेरिकन लीगल डिफेंस एंड एजुकेशन फंड और अमेरिकन सिख कॉकस कमेटी शामिल हैं।
इन संगठनों का कहना है कि यह कदम न केवल न्याय की दिशा में महत्वपूर्ण है, बल्कि 1984 की घटनाओं में मारे गए निर्दोष सिखों की याद में एक आवश्यक सम्मान भी है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब अमेरिकी संसद में इस तरह का प्रस्ताव पेश किया गया है। इससे पहले अक्टूबर 2024 में भी वलाडाओ ने एक समान प्रस्ताव रखा था, लेकिन वह मतदान के लिए सदन में नहीं पहुंच सका था।
कांग्रेस सदस्य डेविड वलाडाओ का बयान
कांग्रेसमैन वलाडाओ ने कहा कि सिख समुदाय को उनके धर्म और पहचान के कारण इतिहास में कई बार निशाना बनाया गया है। 1984 का नरसंहार इसका एक दुखद उदाहरण है। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ऐसी घटनाओं को भुलाया न जाए और सभी दोषियों को सजा मिले।
प्रस्ताव में यह भी उल्लेख किया गया है कि 1984 की हिंसा केवल एक भीड़ की प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि इसमें भारत सरकार और अन्य संस्थाओं की मिलीभगत के संकेत मिले थे। इसका उद्देश्य इन घटनाओं की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नैतिक जवाबदेही तय करना है।
सह-प्रायोजक जिम कोस्टा का बयान
कैलिफोर्निया के सांसद जिम कोस्टा ने कहा कि 1984 सिख नरसंहार की 40वीं बरसी पर हम उस भयावह अध्याय को याद करते हैं जिसने अनगिनत सिख परिवारों को गहरा दर्द दिया। सैन जोक्विन घाटी में बसे हमारे सिख समुदाय के कई लोगों ने अपने नुकसान और साहस की कहानियां हमारे साथ साझा की हैं। यह प्रस्ताव सिर्फ एक प्रतीक नहीं है, बल्कि उन लोगों की पीड़ा को मान्यता देने का कदम है।
भारत की प्रतिक्रिया
वाशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास और भारत के विदेश मंत्रालय ने इस प्रस्ताव पर अभी तक कोई टिप्पणी नहीं की है। विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम से अमेरिका और भारत के बीच कूटनीतिक तनाव बढ़ सकता है, क्योंकि अतीत में भी अमेरिकी कांग्रेस द्वारा ऐसे प्रस्तावों पर भारत ने आपत्ति जताई थी।
1984 का इतिहास
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और अन्य हिस्सों में सिख समुदाय के खिलाफ हिंसा हुई थी। हजारों लोग मारे गए और लाखों विस्थापित हुए। अमेरिकी संसद में यह प्रस्ताव इस ऐतिहासिक त्रासदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में पहचान दिलाने का प्रयास माना जा रहा है।
