क्या ट्रम्प के नए वीज़ा नियम भारतीय पेशेवरों को प्रभावित करेंगे?
अमेरिकी वीज़ा प्रक्रिया में नया बदलाव
नई दिल्ली : एक हालिया लीक हुए विदेश विभाग के ज्ञापन ने अमेरिकी वीज़ा प्रक्रिया में एक विवादास्पद परिवर्तन का खुलासा किया है। ट्रम्प प्रशासन द्वारा जारी इस नीति के तहत, अमेरिकी दूतावासों को उन वीज़ा आवेदकों को अस्वीकार करने का निर्देश दिया गया है जिनका पेशेवर करियर ऑनलाइन सामग्री की निगरानी, जांच या डिजिटल सुरक्षा से संबंधित रहा है। यह नियम विशेष रूप से उन देशों के तकनीकी पेशेवरों पर असर डाल सकता है, जहाँ से बड़ी संख्या में लोग एच-1बी वीज़ा के लिए आवेदन करते हैं, और भारत इसका प्रमुख उदाहरण है।
सेंसरशिप में शामिल लोगों को वीज़ा से रोकने की नीति
“सेंसरशिप में शामिल” लोगों को प्रवेश से रोकने की तैयारी
ज्ञापन के अनुसार, वाणिज्य दूतावास अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे उन व्यक्तियों को वीज़ा देने से मना करें जिनकी भूमिका किसी भी प्रकार की गतिविधियों से जुड़ी हो, जिन्हें “संयुक्त राज्य में संरक्षित अभिव्यक्ति को दबाने” के प्रयास के रूप में देखा जा सकता है। यह नीति पत्रकारों से लेकर पर्यटकों तक सभी वीज़ा श्रेणियों पर लागू होती है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान एच-1बी जैसे उच्च कौशल वाले वीज़ा पर है, जिनके तहत टेक कंपनियाँ विशेषज्ञों को काम पर रखती हैं।
सोशल मीडिया की जांच का अधिकार
सोशल मीडिया तक की जांच करने का अधिकार
नए निर्देशों के तहत अधिकारियों को आवेदकों के लिंक्डइन प्रोफाइल और अन्य सोशल मीडिया गतिविधियों की जांच करने का अधिकार दिया गया है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आवेदक पहले कंटेंट मॉडरेशन, गलत सूचना से निपटने, ट्रस्ट और सेफ्टी, या अनुपालन से जुड़े संवेदनशील कार्यों में शामिल तो नहीं रहे। ऐसे किसी भी सबूत को आवेदक को अयोग्य ठहराने का आधार माना जाएगा।
ऑनलाइन सुरक्षा पेशेवरों पर प्रभाव
ऑनलाइन सुरक्षा पेशेवरों पर संभावित प्रभाव
इस नीति का सबसे बड़ा प्रभाव उन विशेषज्ञों पर पड़ सकता है जो इंटरनेट पर हानिकारक सामग्री से लड़ने का कार्य करते हैं। इसमें बाल यौन शोषण सामग्री हटाने, यहूदी-विरोधी सामग्री की निगरानी, या आत्म-नुकसान को बढ़ावा देने वाली पोस्टों को रोकने वाले पेशेवर भी शामिल हैं। इसके अलावा, ब्रिटेन के ऑनलाइन सेफ़्टी एक्ट 2023 को लागू करने वाले अधिकारी भी इस नीति के दायरे में आ सकते हैं।
प्रशासन का तर्क
प्रशासन का तर्क: “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा”
ट्रम्प प्रशासन ने इस नीति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा के रूप में प्रस्तुत किया है। 6 जनवरी 2021 के कैपिटल दंगे के बाद सोशल मीडिया द्वारा ट्रम्प के खातों पर लगाए गए प्रतिबंधों का हवाला देकर यह दावा किया गया है कि विदेशी पेशेवरों द्वारा की जाने वाली सामग्री निगरानी अमेरिकी नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन कर सकती है। विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा कि अमेरिका उन व्यक्तियों का समर्थन नहीं कर सकता जो यहाँ आकर “अमेरिकियों की आवाज़ दबाने” का कार्य करें।
ट्रस्ट एवं सेफ्टी समुदाय की चिंताएं
ट्रस्ट एवं सेफ्टी समुदाय की आशंकाएं
टेक उद्योग में ट्रस्ट और सेफ्टी का काम करने वाले विशेषज्ञों ने इस नीति पर चिंता जताई है। पार्टनरहीरो में ट्रस्ट एंड सेफ्टी की उपाध्यक्ष एलिस गोगुएन हंसबर्गर ने कहा कि ट्रस्ट और सेफ्टी के काम को सेंसरशिप के रूप में पेश करना खतरनाक है। उनके अनुसार, यह क्षेत्र बच्चों को ऑनलाइन शोषण से बचाने से लेकर धोखाधड़ी और यौन उत्पीड़न को रोकने तक कई गंभीर और जीवनरक्षक कार्यों को शामिल करता है। अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों की उपस्थिति, उनके शब्दों में, अमेरिकियों की डिजिटल सुरक्षा को मजबूत बनाती है।
विदेशी पत्रकारों पर सख्ती
मीडिया और विदेशी पत्रकारों पर सख्ती
यह नीति ऐसे समय में आई है जब ट्रम्प प्रशासन पहले ही विदेशी पत्रकारों के वीज़ा पर प्रतिबंध, सरकारी वेबसाइटों से जलवायु परिवर्तन के उल्लेख हटाने और व्हाइट हाउस प्रेस ब्रीफिंग में पत्रकारों की पहुँच सीमित करने जैसे कदम उठा चुका है। कई मीडिया संगठनों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी इसी व्यापक रुख का हिस्सा रही है।
विदेश मंत्री का बयान
विदेश मंत्री का बयान
मई में विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा था कि ऐसे विदेशी जो किसी भी रूप में अमेरिकियों के अधिकारों को कमज़ोर करते हैं, उन्हें अमेरिका की यात्रा का “विशेषाधिकार” नहीं मिलना चाहिए। उनके बयान के अनुसार, अब उन विदेशी व्यक्तियों के प्रति “निष्क्रिय रवैये के दिन ख़त्म” हो चुके हैं जो अमेरिकी अधिकारों को प्रभावित करते हैं।
