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जंगल के शेर और मानव समाज की हिंसा: एक चिंतन

इस लेख में जंगल के शेर की हिंसा और मानव समाज की हिंसा का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है। लेखक ने यह प्रश्न उठाया है कि क्या हम सच में सभ्य हैं, जबकि हम अपने समाज और पर्यावरण के प्रति निरंतर हिंसा करते रहते हैं। क्या युद्धों का अंत हमेशा शांति वार्ता से होता है? क्या हम सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूक होकर इन समस्याओं का समाधान कर सकते हैं? जानें इस लेख में।
 

शेर की हिंसा और मानवता का दर्पण

यह अद्भुत है कि जंगल का सबसे हिंसक जीव भी अपने अनुशासन का पालन करता है, जबकि हम, जो खुद को सभ्य मानते हैं, अपने समाज और पर्यावरण के प्रति निरंतर हिंसा करते रहते हैं। यह हिंसा कभी-कभी आत्मघाती भी होती है।


हम सभी जानते हैं कि शेर एक अत्यंत हिंसक प्राणी है। हाल ही में, मैं केन्या के मशहूर मसाई मारा वन्य अभ्यारण्य में गया था। वहां खुली जीप में सफर करते समय, सबसे रोमांचक क्षण वह था जब हमारी जीप के चारों ओर चार-पांच बब्बर शेर और शेरनियाँ थीं। हमारी दूरी उनसे केवल 10 फीट थी। वे हमें देख रहे थे और हम उन्हें। वे बेफिक्र होकर अपने शरीर को चाट रहे थे, जबकि हम डर रहे थे कि कहीं वे हम पर हमला न कर दें। हालांकि, फॉरेस्ट गार्ड ने हमें आश्वस्त किया कि ऐसा कुछ नहीं होगा।


हमने न केवल उन्हें आधे घंटे तक देखा, बल्कि जब वे उठकर चले गए, तो हम भी धीरे-धीरे उनका पीछा करते रहे। उन्होंने कोई उत्तेजना नहीं दिखाई। यह अद्भुत है कि जंगल का सबसे हिंसक जीव भी अनुशासन में रहना जानता है, जबकि हम कितने हिंसक हैं कि वाणी, क्रिया और विचारों से अपने समाज और पर्यावरण के प्रति हिंसा करते रहते हैं।


केन्या के उस सुनसान जंगल में बैठे-बैठे मुझे सोशल मीडिया पर खबर मिली कि डोनाल्ड ट्रम्प ने इजराइल और ईरान के बीच युद्ध में शामिल होने का मन बना लिया है। वहीं, यूक्रेन और रूस का युद्ध भी लगातार तबाही मचा रहा है। क्या ये सब विश्व युद्ध की ओर बढ़ते कदम नहीं हैं?


मानव समाज का इतिहास युद्धों से भरा पड़ा है। फिर भी, मुझे यह दार्शनिक प्रश्न उठता है कि युद्ध शुरू करने वाले लोग इतने जंगली क्यों होते हैं? क्या उन्हें यह नहीं दिखता कि युद्ध की विभीषिका में कितने बच्चे अनाथ हो जाते हैं, महिलाएं विधवा हो जाती हैं, और पर्यावरण को कितना नुकसान होता है?


हर युद्ध के बाद शांति वार्ता होती है। अगर हर युद्ध का अंत शांति वार्ता से होता है, तो फिर यह सब विध्वंस क्यों किया जाता है? आम जनता अक्सर अपने नेताओं की प्रशंसा करती है, भले ही वे उनकी तबाही के लिए जिम्मेदार हों।


हर देश में ऐसे लोग होते हैं जो शस्त्र निर्माताओं और भ्रष्ट नेताओं के प्रोपोगैंडा के प्रभाव में आकर अपनी सोच खो देते हैं। ट्रम्प के समर्थक मतदाता भी इसी मानसिकता के शिकार थे।


मैं सैन्य विज्ञान का विद्यार्थी नहीं रहा, लेकिन एक संवेदनशील नागरिक के नाते यह सोचने का हक तो रखता हूँ कि ये युद्ध किसके हित में होते हैं? क्या आम जनता के हित में? संयुक्त राष्ट्र संघ ने आज तक एक भी युद्ध नहीं रोका। क्या कोई नेता उनकी सुनने को तैयार है?


आज दुनिया एक अजीब दौर से गुजर रही है, जहां अशांति और पर्यावरण का विनाश तेजी से बढ़ रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प, जिनका स्वागत हमने किया था, अब अवैध भारतीयों को वापस भेज रहे हैं। इससे कितने युवा अपने सपनों को छोड़कर घर लौट रहे हैं।


ये नेता आम जनता को चैन से जीने नहीं देना चाहते। जंगल का राजा शेर भी बिना कारण किसी पर हमला नहीं करता, जबकि हम उससे कहीं अधिक हिंसक हो चुके हैं। क्या अब समय नहीं है कि हम सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूक होकर इन नेताओं पर दबाव डालें?


दुर्भाग्य से, पिछले कुछ वर्षों में कई देशों में विरोध की आवाज़ों को दबाने की प्रवृत्ति बढ़ी है। लोकतांत्रिक सरकारें भी अब विरोध को दबाने में संकोच नहीं करतीं। इसके दुष्परिणाम केवल जनता को ही नहीं, बल्कि नेताओं को भी भुगतने पड़ते हैं। इसलिए, हर लोकतांत्रिक सरकार को विरोध की आवाज़ों को खुलकर सामने आने देना चाहिए।