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खरमास: जानें इस विशेष अवधि का महत्व और क्या करें क्या न करें

खरमास एक महत्वपूर्ण अवधि है जिसमें सूर्य की ऊर्जा कम होती है, जिससे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है। इस लेख में जानें खरमास का क्या महत्व है, इसकी शुरुआत कब होती है, और इस दौरान किन कार्यों से बचना चाहिए। साथ ही, जानें कि इस समय धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों का क्या महत्व है।
 

खरमास का महत्व


नई दिल्ली: हिंदू धर्म और ज्योतिष में खरमास की अवधि का विशेष महत्व है। यह वह समय होता है जब सूर्य की ऊर्जा कम हो जाती है, जिससे शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। विवाह और गृह प्रवेश जैसे आयोजनों की योजना बनाने वालों के लिए यह समय अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस दौरान ऐसे कार्य करना वर्जित माना जाता है। इसलिए यह जानना आवश्यक है कि खरमास क्या है, इसकी शुरुआत कब होती है और इस दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।


खरमास क्या है?

ज्योतिष के अनुसार, जब सूर्यदेव गुरु बृहस्पति की राशि धनु या मीन में प्रवेश करते हैं, तब खरमास की शुरुआत होती है। इस समय सूर्य की गति और प्रभाव कमजोर होते हैं, इसलिए किसी भी शुभ कार्य के लिए यह अवधि अनुकूल नहीं मानी जाती। खरमास मकर राशि में सूर्य के प्रवेश के साथ समाप्त होता है, जो मकर संक्रांति के दिन होता है।


खरमास की शुरुआत कब होगी?

सूर्यदेव 16 दिसंबर को सुबह 4:19 बजे धनु राशि में प्रवेश करेंगे। ज्योतिष के अनुसार, यदि सूर्य का गोचर सूर्योदय से पहले होता है, तो उसी दिन से खरमास माना जाता है। इस प्रकार, खरमास की शुरुआत 15 दिसंबर से मानी जाएगी। इसका पुण्यकाल 16 दिसंबर की सुबह 4:30 से 10:45 बजे तक रहेगा, जिसमें 4:30 से 9:30 बजे का समय सबसे शुभ माना गया है। यह अवधि लगभग 30 दिनों तक चलेगी और मकर संक्रांति पर समाप्त होगी।


खरमास में क्या नहीं करना चाहिए?

खरमास के दौरान किसी भी शुभ या मांगलिक कार्य से बचने की सलाह दी जाती है। इस समय गृह प्रवेश, विवाह, सगाई, मुंडन संस्कार, गृह निर्माण और गोद भराई जैसे कार्य वर्जित माने जाते हैं। इसके अलावा, नए वाहन या घर की खरीदारी भी इस अवधि में नहीं करनी चाहिए।


मान्यता है कि खरमास में वाद-विवाद से दूर रहना चाहिए और मांस-मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसका जीवन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।


खरमास में क्या करना चाहिए?

यह अवधि धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यों के लिए बेहद शुभ मानी जाती है। खरमास में दान-पुण्य करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है। जरूरतमंद व्यक्ति को इस दौरान खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए।


रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता और सत्यनारायण कथा का पाठ करना लाभकारी माना जाता है। साथ ही पूजा-पाठ, हवन और सूर्यदेव की उपासना करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है। इस दौरान भगवान शिव और भगवान विष्णु की आराधना करने से कष्टों से मुक्ति मिलने की मान्यता भी है।


कुल मिलाकर, खरमास भले ही मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ माना जाए, लेकिन यह आत्मशुद्धि, साधना और दान के लिए एक उत्तम समय है।