डॉ. श्रीकांत जिचकर: भारत के सबसे शिक्षित व्यक्ति की प्रेरणादायक कहानी
डॉ. श्रीकांत जिचकर का अद्वितीय प्रोफाइल
डॉ. श्रीकांत जिचकर की उपलब्धियाँ: उन्होंने MBBS, MD, IAS, IPS, LAW, MBA, और PhD जैसी 20 प्रमुख डिग्रियाँ हासिल की। हर छह महीने में एक नई परीक्षा और एक नई डिग्री प्राप्त करना उनके जुनून को दर्शाता है। यह कहानी है डॉ. जिचकर की, जो भारत के सबसे शिक्षित व्यक्ति के रूप में जाने जाते हैं। उन्होंने केवल पढ़ाई नहीं की, बल्कि हर डिग्री के पीछे मेहनत और समर्पण का परिचय दिया।
जब अधिकांश लोग एक डिग्री के लिए पांच साल लगाते हैं, डॉ. जिचकर ने हर छह महीने में खुद को नया रूप दिया। 28 वर्ष की आयु में, वे भारत के सबसे युवा विधायक बने और संसद में देश की सेवा की। दुर्भाग्यवश, उनका निधन 2004 में एक सड़क दुर्घटना में हुआ।
शिक्षा में अद्वितीयता
भारत के सबसे शिक्षित व्यक्ति के रूप में पहचान
डॉ. जिचकर का शैक्षणिक पृष्ठभूमि उन्हें चिकित्सा, कानून, पत्रकारिता, इतिहास और राजनीतिक विज्ञान जैसे विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञ बनाता है। जबकि अधिकांश लोग जीवन में एक या दो डिग्री प्राप्त करते हैं, उन्होंने 42 विश्वविद्यालयों से 20 डिग्रियाँ हासिल की। नागपुर में 14 सितंबर 1954 को जन्मे श्रीकांत ने MBBS, LLB, MBA, पत्रकारिता, इतिहास और राजनीतिक विज्ञान में डिग्रियाँ प्राप्त कीं।
स्वर्ण पदक और राजनीतिक करियर
25 वर्ष की आयु में स्वर्ण पदक विजेता
25 वर्ष की आयु में, डॉ. जिचकर ने लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया। उन्होंने कई बार प्रथम श्रेणी में परीक्षा उत्तीर्ण की और कई स्वर्ण पदक जीते। वे एक डॉक्टर और वकील थे और अपने ज्ञान के प्रति जुनून के कारण पहले IPS और फिर IAS बने। 1978 में, उन्होंने संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा उत्तीर्ण की और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में शामिल हुए।
राजनीतिक जीवन और योगदान
सबसे कम उम्र के विधायक
आईएएस बनने के चार महीने बाद, डॉ. जिचकर ने इस्तीफा देकर 26 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र विधानसभा के लिए चुनाव लड़ा और भारत के सबसे कम उम्र के विधायक बने। बाद में, वे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री बने और 14 विभागों का कार्यभार संभाला। जिचकर 1986 से 1992 तक महाराष्ट्र विधान परिषद (MLC) के सदस्य रहे और राज्यसभा सांसद के रूप में भी कार्य किया।
पुस्तकों के प्रति प्रेम और अंतिम दिन
लोकसभा चुनावों में असफलता
अपने पेशेवर जीवन में कई ऊंचाइयों को छूने के बावजूद, जिचकर ने दो लोकसभा चुनावों में हार का सामना किया। उनके निजी पुस्तकालय में 52,000 पुस्तकें थीं, जो इसे भारत के सबसे बड़े पुस्तकालयों में से एक बनाती थीं। इसके अलावा, उन्होंने महाराष्ट्र में कविकुलगुरु कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की। 2 जून 2004 को, डॉ. जिचकर की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई।