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पृथ्वी पर पहले विवाह की पौराणिक कथा

इस लेख में हम जानेंगे कि पृथ्वी पर पहले विवाह की पौराणिक कथा क्या है। मनु और शतरूपा के माध्यम से विवाह की परंपरा की नींव कैसे रखी गई, और ब्रह्मा जी की भूमिका क्या थी। यह कथा न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह विवाह के मूल संदेश को भी उजागर करती है। जानें कैसे ऋषि श्वेत ने विवाह को एक विधिवत संस्कार के रूप में स्थापित किया।
 

प्राचीन विवाह की परंपरा


नई दिल्ली: प्राचीन ग्रंथों में विवाह को केवल एक सामाजिक व्यवस्था नहीं, बल्कि सृष्टि को आगे बढ़ाने वाला दिव्य और शाश्वत बंधन माना गया है. इसी कारण यह सवाल कई लोगों के मन में उठता है कि पृथ्वी पर सबसे पहली शादी किसने की थी और यह परंपरा कब शुरू हुई. पौराणिक कथाओं में इस घटना का अत्यंत रोचक वर्णन मिलता है. हिन्दू धर्म के शास्त्र बताते हैं कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्मा जी ने मानव जाति को जन्म दिया और जीवन के मूल सिद्धांत प्रदान किए.


विवाह की नींव

इन्हीं सिद्धांतों की धुरी पर विवाह जैसी पवित्र परंपरा की नींव रखी गई. मनु और शतरूपा को पहला मानव युगल माना गया और इन्हीं के माध्यम से विवाह का प्रारंभिक रूप पृथ्वी पर स्थापित हुआ.


ब्रह्मा जी का शरीर का विभाजन

ब्रह्म पुराण के अनुसार सृष्टि रचना के बाद ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो भागों में विभाजित किया. इन भागों को 'का' और 'या' कहा गया, जिनके संयोजन से 'काया' उत्पन्न हुई. इसी काया से पुरुष और स्त्री तत्व प्रकट हुए. यह मानव सृष्टि का पहला चरण था जिसने स्थायी सामाजिक और पारिवारिक व्यवस्था का आधार तैयार किया.


स्त्री-पुरुष की रचना

ब्रह्मा जी ने पुरुष का नाम स्वयंभुव मनु और स्त्री का नाम शतरूपा रखा. दोनों को सृष्टि और गृहस्थ जीवन से जुड़ा ज्ञान प्रदान किया गया. जब मनु और शतरूपा पृथ्वी पर पहुंचे, तो ब्रह्मा द्वारा दिए गए जीवन-सिद्धांतों के अनुसार दोनों ने एक-दूसरे को स्वीकार किया. यही वह क्षण था जिसने मानव समाज में दांपत्य की शुरुआत का आधार रखा.


पहला विवाह

शास्त्रों में वर्णित है कि मनु और शतरूपा पृथ्वी के पहले दंपत्ति थे. इन्हीं दोनों को पहला विवाह करने वाला युगल माना जाता है. इनके विवाह के बाद इनके सात पुत्र और तीन पुत्रियां हुईं, जिनसे मानव वंश आगे बढ़ा. कुछ ग्रंथ यह भी बताते हैं कि यह विवाह पूर्ण विधि-विधान से नहीं हुआ था, बल्कि गृहस्थ जीवन की शुरुआत के रूप में प्रतिष्ठित था.


विवाह परंपरा की स्थापना

विवाह को पूरी तरह विधिवत संस्कार के रूप में स्थापित करने का कार्य ऋषि श्वेत ने किया. उन्होंने विवाह के नियम, मर्यादाएं, फेरों का महत्व, मंगलसूत्र और सिन्दूर का महत्व, तथा पति–पत्नी के वचनों की संरचना तय की. उन्होंने ही बताया कि विवाह में दोनों का स्थान समान है, न कि किसी का दूसरे पर आधिपत्य. यही नियम आगे चलकर वैदिक विवाह का आधार बने.


विवाह का संदेश

अक्सर शादियों में यह सुनने को मिलता है कि पत्नी पति की आज्ञा बिना कुछ नहीं करेगी, परंतु ऋषि श्वेत द्वारा निर्धारित वैदिक नियम पति-पत्नी को समान दर्जा देते हैं. विवाह परंपरा का मूल संदेश सहयोग, सम्मान और संयुक्त जिम्मेदारी है. मनु और शतरूपा की कथा इसी संतुलन की पहली मिसाल बनकर सामने आती है और आज भी विवाह के उद्देश्य को समझने में मार्गदर्शन देती है.