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मध्य प्रदेश के देवास में मां ब्रह्मचारिणी का अद्भुत मंदिर

मध्य प्रदेश के देवास में स्थित मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। नवरात्र के दौरान यहां मां के दर्शन करने से हर मनोकामना पूरी होती है। भक्तजन सफेद रंग के फल और कद्दू की सब्जी भोग में चढ़ाते हैं। मां के मंत्रों का जाप करने से मानसिक और शारीरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। जानें इस अद्भुत मंदिर की विशेषताएं और मां की महिमा के बारे में।
 

हर मनोकामना पूरी करने वाली मां ब्रह्मचारिणी


दर्शन से मिलती है हर इच्छा की पूर्ति, देवी को चढ़ती है खास सब्जी
शारदीय नवरात्र का पर्व शुरू हो चुका है। आज मां ब्रह्मचारिणी का दूसरा नवरात्र है, जब उनके स्वरूप की पूजा की जाती है। नवरात्र के नौ दिनों में देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है। इस दौरान भक्तजन मां दुर्गा की भक्ति भाव से पूजा करते हैं और नवरात्र का व्रत रखते हैं।


मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से साधक की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है। देशभर में मां ब्रह्मचारिणी के कई प्रमुख मंदिर हैं, जिनमें से एक मध्य प्रदेश के देवास में स्थित है। यहां मां को भोग में विशेष रूप से सब्जी चढ़ाई जाती है।


मां ब्रह्मचारिणी के दर से कोई भक्त खाली नहीं लौटता

देवास जिले के घने जंगलों में बगोई माता का मंदिर स्थित है। यहां मां ब्रह्मचारिणी की महिमा अद्वितीय है। कहा जाता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्त कभी भी खाली हाथ नहीं लौटते। उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। बड़ी संख्या में लोग मन्नत मांगने या मन्नत पूरी होने पर मां के दर्शन के लिए आते हैं।


इस समय भक्तजन भक्ति भाव से मां की पूजा कर उनके आशीर्वाद के भागी बनते हैं।


कद्दू का भोग

मां ब्रह्मचारिणी को तप की देवी माना जाता है और उन्हें सफेद रंग प्रिय है। पूजा के दौरान सफेद रंग के फल और फूल अर्पित किए जाते हैं। इसके अलावा, बगोई माता को भोग में फल, फूल और कद्दू की सब्जी चढ़ाई जाती है। मां की कृपा से साधक की हर इच्छा पूरी होती है। कहा जाता है कि मां के दर्शन से शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।


मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र

1. दधाना कर पद्माभ्यामक्ष माला कमण्डलु।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।


2. या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।


3. तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥


4. शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥