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वृश्चिक संक्रांति: तिथि, मुहूर्त और विशेष उपाय

वृश्चिक संक्रांति, जो 16 नवंबर को मनाई जाएगी, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन सूर्य देव तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं, जिससे विशेष धार्मिक महत्व जुड़ा है। इस लेख में हम इस पर्व की तिथि, मुहूर्त और विशेष उपायों के बारे में जानेंगे। जानें कैसे इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।
 

वृश्चिक संक्रांति का महत्व

हिंदू धर्म में वृश्चिक संक्रांति का विशेष धार्मिक महत्व है। इस दिन सूर्य देव तुला राशि से निकलकर वृश्चिक राशि में प्रवेश करते हैं। इस अवसर पर पवित्र नदियों में स्नान करना अत्यंत शुभ और पुण्यदायक माना जाता है। इस वर्ष, वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर को मनाई जाएगी। जो लोग इस दिन नदी में स्नान करने के बाद सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं, उनके जीवन की सभी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। इसके साथ ही, जातक की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है और इस दिन दान-पुण्य करना भी आवश्यक होता है। इस लेख में हम वृश्चिक संक्रांति की तिथि, मुहूर्त और विशेष उपायों के बारे में चर्चा करेंगे।


तिथि और मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, 16 नवंबर 2025 को रविवार को सूर्य देव तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इस राशि परिवर्तन को वृश्चिक संक्रांति कहा जाता है। इस दिन स्नान, दान और पूजा-पाठ के लिए पुण्य काल और महापुण्य काल अत्यंत फलदायी माने जाते हैं। पुण्यकाल सुबह 08:02 से दोपहर 01:45 तक है, जबकि महापुण्यकाल दोपहर 11:58 से 01:45 तक रहेगा। संक्रांति का मुख्य क्षण दोपहर 01:45 बजे तक है।


उपाय कैसे करें

वृश्चिक संक्रांति के अवसर पर सूर्योदय से पहले उठकर किसी पवित्र नदी में या घर में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद, तांबे के लोटे में लाल चंदन, हल्दी, सिंदूर और रोली मिलाकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करें। अर्घ्य देते समय 'ऊँ सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करें और भगवान सूर्य को गुड़ से बनी खीर का भोग लगाएं। इसके बाद, सूर्य देव की पूजा के बाद गरीबों को अन्न, वस्त्र और आवश्यक वस्तुओं का दान करें।


उपाय

इस दिन सच्चे मन से सूर्य देव की आराधना करना चाहिए। ऐसा करने से अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। संक्रांति के दिन माता-पिता के चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें, इससे आपका भाग्योदय होगा।


मंत्र

ॐ ऐहि सूर्य सहस्रांशो तेजो राशे जगत्पते।


अनुकंपयेमां भक्त्या गृहाणार्घ्यं दिवाकर:।


ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय सहस्रकिरणराय मनोवांछित फलम् देहि देहि स्वाहा।


ॐ घृणि सूर्याय नमः।


ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।