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शनिवार को त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग

इस शनिवार को आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर त्रिपुष्कर और रवि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है। जानें इस दिन की विशेषताएँ, शनिदेव की पूजा विधि और इसके लाभ। ज्योतिष में इस दिन निवेश, यात्रा और शिक्षा से संबंधित कार्यों की शुरुआत करना लाभकारी माना जाता है। शनिदेव की पूजा के लिए विशेष उपाय भी बताए गए हैं, जो आपको उनके प्रकोप से मुक्ति दिला सकते हैं।
 

विशेष ज्योतिषीय संयोग

नई दिल्ली: आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि शनिवार को है। इस दिन सूर्य सिंह राशि में और चंद्रमा वृषभ राशि में स्थित रहेंगे। इस दिन त्रिपुष्कर और रवि योग का एक विशेष संयोग बन रहा है। दृक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:52 बजे से शुरू होकर 12:42 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल सुबह 9:11 बजे से 10:44 बजे तक रहेगा।


रवि योग का महत्व

ज्योतिष में रवि योग को शुभ माना जाता है। यह तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से चौथे, छठे, नौवें, दसवें और तेरहवें स्थान पर होता है। इस दिन निवेश, यात्रा, शिक्षा या व्यवसाय से संबंधित कार्यों की शुरुआत करना लाभकारी माना जाता है।


त्रिपुष्कर योग का महत्व

इस दिन 'त्रिपुष्कर योग' भी बन रहा है, जो तब बनता है जब रविवार, मंगलवार या शनिवार को द्वितीया, सप्तमी, या द्वादशी में से कोई एक तिथि हो। शनिवार होने के कारण शनि देव की पूजा का विशेष महत्व है। कई लोग शनिदेव को भय की दृष्टि से देखते हैं, लेकिन यह धारणा गलत है। ज्योतिष में मान्यता है कि शनि देव व्यक्ति को संघर्ष देने के साथ-साथ उन्हें सोने की तरह चमका भी देते हैं।


शनिवार का व्रत

शनि देव व्यक्ति को उनके कर्मों के अनुसार फल देते हैं। जब शनि की साढ़े साती, ढैय्या या महादशा चलती है, तो व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में शनिवार का व्रत शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या से मुक्ति पाने के लिए किया जाता है। यह व्रत किसी भी शुक्ल पक्ष के शनिवार से शुरू किया जा सकता है।


पूजा विधि

मान्यताओं के अनुसार, 7 शनिवार व्रत रखने से शनिदेव के प्रकोप से मुक्ति मिलती है और हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त होती है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और फिर मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं, उन्हें गुड़, काले वस्त्र, काले तिल, काली उड़द की दाल और सरसों का तेल अर्पित करें।


इसके बाद सरसों के तेल का दीपक जलाएं। रोली, फूल आदि चढ़ाने के बाद जातक को शनि स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, साथ ही सुंदरकांड और हनुमान चालीसा का भी पाठ करना चाहिए। पूजा के बाद 'शं शनैश्चराय नम:' और 'सूर्य पुत्राय नम:' का जाप करना चाहिए।


पीपल के पेड़ के नीचे हर शनिवार को सरसों के तेल का दीपक जलाना और छाया दान करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे नकारात्मकता दूर होती है और शनिदेव की विशेष कृपा प्राप्त होती है।