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श्री रामचन्द्रजी की महिमा: रामचरितमानस के अद्भुत भावार्थ

इस लेख में हम श्री रामचन्द्रजी की महिमा और रामचरितमानस के अद्भुत भावार्थ पर चर्चा करेंगे। जानें कैसे ये शिक्षाएँ जीवन में मार्गदर्शन करती हैं और हमें सच्चे मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं। इस लेख में प्रस्तुत चौपाइयाँ और दोहे हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं।
 

श्री रामचन्द्राय नम:

श्री रामचन्द्राय नम:




पुण्यं पापहरं सदा शिवकरं विज्ञानभक्तिप्रदं


मायामोहमलापहं सुविमलं प्रेमाम्बुपूरं शुभम्।


श्रीमद्रामचरित्रमानसमिदं भक्त्यावगाहन्ति ये


ते संसारपतङ्गघोरकिरणैर्दह्यन्ति नो मानवाः




दोहा :


कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच।


पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच॥




भावार्थ:- जो मोह रूपी पिशाच के द्वारा ग्रस्त हैं, पाखण्डी हैं, भगवान के चरणों से विमुख हैं और जो झूठ-सच कुछ भी नहीं जानते, ऐसे अधम मनुष्य ही इस तरह की बात कहते-सुनते हैं॥


चौपाई:

अग्य अकोबिद अंध अभागी। काई बिषय मुकुर मन लागी॥


लंपट कपटी कुटिल बिसेषी। सपनेहुँ संतसभा नहिं देखी॥1॥




भावार्थ:- जो अज्ञानी, मूर्ख, अंधे और भाग्यहीन हैं और जिनके मन रूपी दर्पण पर विषय रूपी काई जमी हुई है, जो व्यभिचारी, छली और बड़े कुटिल हैं और जिन्होंने कभी स्वप्न में भी संत समाज के दर्शन नहीं किए॥1॥


अगले प्रसंग में:

शेष अगले प्रसंग में -------------




राम रामेति रामेति, रमे रामे मनोरमे ।


सहस्रनाम तत्तुल्यं, रामनाम वरानने ॥




- आरएन तिवारी