कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर: अनोखी परंपरा और सांस्कृतिक समावेशिता
कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर की अनोखी परंपरा
केरल के कोल्लम जिले में स्थित कोट्टनकुलंगरा श्रीदेवी मंदिर अपनी अनोखी धार्मिक परंपरा के लिए देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यहां देवी भगवती की पूजा का तरीका अन्य मंदिरों से भिन्न है। इस मंदिर में देवी की आराधना से पहले पुरुष श्रद्धालुओं का महिलाओं की तरह श्रृंगार करना अनिवार्य है, जो न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक समावेश और सांस्कृतिक विविधता को भी दर्शाता है।
चमायाविलक्कू अनुष्ठान का महत्व
चमायाविलक्कू अनुष्ठान
इस मंदिर की सबसे प्रमुख परंपरा चमायाविलक्कू है। इस अनुष्ठान में पुरुष श्रद्धालु साड़ी पहनते हैं, चूड़ियां, बिंदी और पारंपरिक आभूषण धारण करते हैं और देवी दुर्गा के रूप में पूजित भगवती अम्मा की आराधना करते हैं। यह अनुष्ठान हर वर्ष 23 और 24 मार्च को आयोजित होता है, जिसमें केरल और अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
धार्मिक विद्वानों का मानना है कि यह परंपरा देवी को समर्पण और अहंकार के त्याग का प्रतीक है, जहां भक्त अपनी पहचान से ऊपर उठकर केवल श्रद्धा के भाव से पूजा करता है।
परंपरा का उद्देश्य
क्यों निभाई जाती है यह परंपरा
स्थानीय मान्यता के अनुसार, देवी भगवती अपने भक्तों की भावना को देखती हैं, न कि उनके रूप को। कहा जाता है कि जो पुरुष इस अनुष्ठान में विधिपूर्वक भाग लेते हैं, उनकी इच्छाएं जैसे नौकरी, विवाह, स्वास्थ्य और पारिवारिक सुख जल्दी पूरी होती हैं।
केरल के सांस्कृतिक इतिहास पर शोध करने वाले विद्वान बताते हैं कि यह परंपरा सदियों पुरानी है और समाज में लैंगिक समानता और स्वीकार्यता की भावना को भी दर्शाती है।
मंदिर की अनोखी संरचना
मंदिर की संरचना भी है अलग
कोट्टनकुलंगरा मंदिर अपनी वास्तुकला के कारण भी अद्वितीय है।
- गर्भगृह में न तो छत है और न ही कलश
- यह केरल का एकमात्र मंदिर है जहां यह संरचना देखने को मिलती है
- श्रद्धालुओं का विश्वास है कि देवी की प्रतिमा का आकार हर वर्ष कुछ इंच बढ़ता है, जिसे चमत्कार के रूप में देखा जाता है
हालांकि पुरातत्व विशेषज्ञ इसे प्राकृतिक पत्थर की संरचना और मौसम के प्रभाव से जोड़ते हैं, लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था आज भी अटूट है।
पौराणिक कथाएं और श्रद्धालुओं की सुविधा
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथाएं
मंदिर की स्थापना को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, कुछ चरवाहों ने यहां एक पत्थर को महिलाओं के रूप में सजाकर फूल चढ़ाए थे, जिसके बाद वहां दिव्य शक्ति का अनुभव हुआ। दूसरी मान्यता के अनुसार, जब एक पत्थर पर नारियल फोड़ा गया तो उसमें से रक्त जैसा द्रव निकला, जिससे पूजा की शुरुआत हुई।
इतिहासकार मानते हैं कि इन कथाओं ने इस स्थान को धार्मिक केंद्र के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम
आज के समय में मंदिर प्रशासन ने श्रद्धालुओं की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में विशेष मेकअप कक्ष बनवाए हैं। यहां पुरुष श्रद्धालु बिना किसी असुविधा के श्रृंगार कर सकते हैं। यह व्यवस्था इस बात को दर्शाती है कि परंपरा के साथ-साथ आधुनिक जरूरतों का भी ध्यान रखा जा रहा है।
परंपरा की प्रासंगिकता
क्यों है यह परंपरा आज भी प्रासंगिक
कोट्टनकुलंगरा मंदिर की यह परंपरा बताती है कि भारतीय संस्कृति में भक्ति का स्वरूप कितना व्यापक और समावेशी रहा है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था, समानता और सांस्कृतिक स्वतंत्रता का जीवंत उदाहरण है। यही कारण है कि यह मंदिर हर साल नई पीढ़ी और शोधकर्ताओं को भी आकर्षित करता है।