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खपली गेहूं: पारंपरिक अनाज की बढ़ती मांग और मूल्य

खपली गेहूं, एक प्राचीन अनाज, आजकल स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहा है। इसकी उच्च कीमतें, कम उत्पादन और पोषण संबंधी लाभ इसे खास बनाते हैं। जानें इसके खेती की चुनौतियाँ, स्वाद और स्वास्थ्य लाभ के बारे में। क्या यह पारंपरिक अनाज आपके लिए सही विकल्प हो सकता है? इस लेख में जानें।
 

खपली गेहूं की बढ़ती लोकप्रियता

भारत में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के चलते खपली गेहूं एक बार फिर चर्चा का विषय बन गया है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर इसका आटा 200 से 250 रुपये प्रति किलो के बीच बिक रहा है, जबकि इसके बीजों की कीमत 8,000 से 10,000 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गई है। यह सवाल उठता है कि आखिर यह पारंपरिक गेहूं इतना महंगा क्यों है और लोग इसके लिए अधिक पैसे खर्च करने को क्यों तैयार हैं।


खपली गेहूं की पहचान और उत्पत्ति

खपली गेहूं को प्राचीन या विरासत गेहूं के नाम से भी जाना जाता है। यह हजारों साल पुरानी किस्म मानी जाती है, जिसे आधुनिक हाईब्रिड गेहूं की तरह अधिक परिवर्तित नहीं किया गया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, यह गेहूं प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है और इसमें आनुवांशिक हस्तक्षेप बहुत कम हुआ है। इसके दाने लंबे और पतले होते हैं और हल्का लाल भूरा रंग इसे सामान्य गेहूं से अलग पहचान देता है।


खेती की प्रक्रिया और चुनौतियाँ

खपली गेहूं की खेती सामान्य गेहूं की तरह होती है, लेकिन कटाई के समय असली चुनौती सामने आती है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसे सामान्य हार्वेस्टर या थ्रेशर से आसानी से नहीं काटा जा सकता। इसके दाने भूसे से मजबूती से जुड़े रहते हैं, जिससे अलग करने में अधिक मेहनत और समय लगता है। इस कारण कटाई के दौरान वजन कम हो जाता है और किसानों को उत्पादन में नुकसान उठाना पड़ता है।


उत्पादन की सीमाएँ और लागत

आंकड़ों के अनुसार, एक एकड़ में खपली गेहूं की पैदावार लगभग 12 से 14 क्विंटल होती है, जबकि आधुनिक गेहूं की किस्मों से 20 क्विंटल या उससे अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। कम उपज और अधिक मेहनत के कारण अधिकांश किसान इसकी खेती से दूर रहते हैं, जिससे बाजार में इसकी उपलब्धता सीमित रहती है और कीमतें ऊंची बनी रहती हैं।


पोषण के लाभ

पोषण विशेषज्ञों का मानना है कि खपली गेहूं में सामान्य गेहूं की तुलना में अधिक फाइबर, प्रोटीन और खनिज तत्व होते हैं। इसमें आयरन, मैग्नीशियम और जिंक अच्छी मात्रा में होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं। इसके अलावा, इसमें प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं, जो लंबे समय तक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माने जाते हैं।


ग्लूटन की मात्रा और पाचन

खपली गेहूं की एक प्रमुख विशेषता इसका कम ग्लूटन स्तर है। डॉक्टरों के अनुसार, जिन लोगों को ग्लूटन से संबंधित समस्याएँ या पाचन में कठिनाई होती है, उनके लिए यह गेहूं एक बेहतर विकल्प हो सकता है। हालांकि यह पूरी तरह से ग्लूटन फ्री नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव शरीर पर अपेक्षाकृत हल्का होता है।


मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद

खपली गेहूं का ग्लाइसेमिक इंडेक्स सामान्य गेहूं से कम होता है, जिसका अर्थ है कि इसे खाने के बाद रक्त शर्करा तेजी से नहीं बढ़ती। डायटीशियन का कहना है कि नियमित और संतुलित मात्रा में इसका सेवन मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी हो सकता है, खासकर जब इसे रिफाइंड आटे के स्थान पर अपनाया जाए।


स्वाद और बनावट

इस गेहूं से बने आटे का रंग हल्का लाल भूरा और बनावट थोड़ी खुरदुरी होती है। इससे बनी रोटियाँ या चपातियाँ अधिक समय तक नरम रहती हैं और इनमें हल्का नटी स्वाद होता है। कई लोग इसे पारंपरिक स्वाद से जोड़कर देखते हैं।


उच्च कीमत का कारण

विशेषज्ञों का मानना है कि खपली गेहूं की ऊंची कीमत केवल फैशन का परिणाम नहीं है। कम उत्पादन, कठिन प्रोसेसिंग और बढ़ती स्वास्थ्य मांग इसकी कीमत को बढ़ा रही है। यदि भविष्य में इसकी खेती को तकनीकी सहायता मिले, तो कीमतों में संतुलन आ सकता है।