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प्राकृतिक खेती: एक टिकाऊ कृषि प्रणाली का उदय

प्राकृतिक खेती एक रासायन मुक्त कृषि पद्धति है, जो किसानों को प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके फसल उत्पादन में मदद करती है। यह न केवल पर्यावरण का संरक्षण करती है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि करती है। जानें इसके लाभ, उद्देश्य और कैसे यह टिकाऊ कृषि प्रणाली बन रही है।
 

प्राकृतिक खेती का परिचय

प्राकृतिक खेती, रेवाड़ी। राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन, जिसे रासायन मुक्त कृषि पद्धति के रूप में जाना जाता है, में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के स्थान पर प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। इसमें मिट्टी के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए देसी गाय के गोबर, मूत्र और अन्य स्थानीय जैविक संसाधनों का सहारा लिया जाता है, जिससे फसल उत्पादन की लागत में कमी आती है और पर्यावरण का संरक्षण होता है।


प्राकृतिक खेती के लाभ

यह एक स्थायी और आत्मनिर्भर कृषि प्रणाली है, जो पर्यावरण के अनुकूल खाद्य पदार्थों का उत्पादन करती है। किसानों की आय में वृद्धि करने में भी यह सहायक है। प्रगतिशील किसान और किसान रत्न अवॉर्डी यशपाल खोला कंवाली ने बताया कि प्रारंभ में उत्पादन भले ही कम हो, लेकिन समय के साथ यह बढ़ता है। वर्तमान में जिले में लगभग 1,000 एकड़ में इस प्रकार की खेती की जा रही है, और राज्य सरकार भी इसे प्रोत्साहित कर रही है।


प्राकृतिक खेती के मुख्य उद्देश्य

रसायन मुक्त खेती: सिंथेटिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों का उपयोग पूरी तरह से समाप्त कर दिया जाता है।


जैविक इनपुट का उपयोग: देसी गाय के गोबर और मूत्र से बने उत्पादों जैसे जीवामृत और बीजामृत का उपयोग मिट्टी को पोषक तत्व प्रदान करने और पौधों को मजबूत बनाने के लिए किया जाता है।


फसल चक्र और कवर फसलें: मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और कटाव से बचाने के लिए फसल चक्र और कवर फसलों का उपयोग किया जाता है।


पशुधन का एकीकरण: प्राकृतिक खेती में फसलों के साथ पशुधन को एकीकृत किया जाता है, जिससे एक विविध और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनता है।


स्थानीय संसाधनों पर निर्भरता: यह पद्धति किसानों को बाजार पर निर्भरता कम करने और स्थानीय रूप से उपलब्ध प्राकृतिक सामग्री का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करती है। इससे किसान अपनी आय भी बढ़ा सकते हैं।


लागत में कमी और लाभ में वृद्धि

• रसायनों पर निर्भरता कम होने से किसानों की खेती की लागत में कमी आती है।
• मिट्टी की गुणवत्ता और जैविक विविधता में वृद्धि होती है, जिससे भूजल और सतही जल प्रदूषण में कमी आती है।
• रसायन मुक्त होने के कारण उत्पादित भोजन स्वास्थ्य के लिए अधिक पौष्टिक और सुरक्षित होता है।
• सीधे ग्राहकों को बेचकर और उत्पादन लागत कम करके किसानों की आय में वृद्धि होती है। यह प्राचीन भारतीय पद्धति है, जिसे आधुनिक कृषि पारिस्थितिकी की समझ के साथ जोड़ा गया है।