अमेरिका ने भारतीय जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की योजना टाली
भारतीय फार्मा उद्योग को मिली राहत
वॉशिंगटन से आई एक महत्वपूर्ण सूचना ने भारतीय फार्मास्यूटिकल क्षेत्र और अमेरिका के मरीजों को राहत प्रदान की है। ट्रंप प्रशासन ने भारतीय जेनेरिक दवाओं पर टैरिफ लगाने की योजना को फिलहाल स्थगित कर दिया है, जिससे प्रमुख भारतीय दवा कंपनियाँ जैसे सिप्ला, सन फार्मा और डॉ. रेड्डीज़ लैबोरेट्रीज़ ने राहत की सांस ली है।
अमेरिका में दवाओं की आपूर्ति
अमेरिका में उपयोग होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं भारत से आती हैं। यदि इन पर टैरिफ लगाया जाता, तो दवाओं की कीमतें बढ़ सकती थीं, जिसका सीधा असर आम अमेरिकियों की जेब पर पड़ता।
मेक इन अमेरिका नीति का प्रभाव
ट्रंप प्रशासन के कुछ सलाहकारों का मानना था कि 'मेक इन अमेरिका' नीति के तहत दवा निर्माण को अमेरिका में लाना चाहिए। हालांकि, कई आर्थिक विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि ऐसा करने से दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं और बाजार में दवाओं की कमी हो सकती है।
सरकार का समझदारी भरा निर्णय
सरकार ने समझदारी दिखाते हुए जांच का दायरा सीमित कर दिया है और भारत से आने वाली सस्ती दवाओं पर टैरिफ लगाने के विचार को रोक दिया है।
भारतीय दवाओं की आर्थिक बचत
आंकड़ों के अनुसार, केवल 2022 में भारतीय दवाओं के कारण अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली को लगभग 219 अरब डॉलर की बचत हुई। पिछले एक दशक में, भारत की जेनेरिक दवाओं ने अमेरिका को 1.3 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की बचत कराई है।
भारत की फार्मेसी की भूमिका
भारत को 'फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड' कहा जाता है क्योंकि अमेरिका में ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन, कोलेस्ट्रॉल, डायबिटीज़ और पेट से संबंधित अधिकांश दवाएं भारतीय कंपनियों से आती हैं।
अमेरिकी मरीजों के लिए फायदेमंद
सरकार के इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट है कि भारत की दवा उद्योग न केवल वैश्विक स्वास्थ्य को संभाल रही है, बल्कि अमेरिकी मरीजों की जेब भी बचा रही है। अमेरिकी मरीज अब 'कम दाम, बेहतर इलाज' के इस भारतीय फॉर्मूले का लाभ उठाते रहेंगे।