कॉर्पोरेट धोखाधड़ी: छोटे आपूर्तिकर्ताओं की बर्बादी का मामला
कॉर्पोरेट जगत में हलचल: दो प्रमुख घटनाएं
कमल स्पंज समाचार, (नई दिल्ली) : हाल के दिनों में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र में दो महत्वपूर्ण घटनाएं चर्चा का विषय बनी हुई हैं। पहली घटना तब हुई जब अमेरिकी फॉरेंसिक फर्म वायसराय रिसर्च ने वेदांता ग्रुप पर 'आक्रामक लेखांकन' और वित्तीय हेरफेर के गंभीर आरोप लगाए। दूसरी घटना में, प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुग्राम के एक प्रमुख बिल्डर और ऑटो पार्ट्स कंपनी की ₹1,200 करोड़ की संपत्ति को जब्त किया।
छोटे आपूर्तिकर्ताओं की बर्बादी का सच
इन दोनों मामलों से यह स्पष्ट होता है कि देश के शीर्ष कॉर्पोरेट स्तरों पर गवर्नेंस में खामियां अभी भी विद्यमान हैं। हालांकि, इन घटनाओं के पीछे एक और कड़वी सच्चाई छिपी हुई है: छोटे आपूर्तिकर्ताओं, निवेशकों और विक्रेताओं की बर्बादी। मध्य प्रदेश की कंपनी कमल स्पंज स्टील एंड पावर लिमिटेड (KSSPL) का मामला इस बात का उदाहरण है। यह मामला भले ही राष्ट्रीय मीडिया में नहीं आया, लेकिन इसके आर्थिक प्रभाव और प्रभावित लोगों की संख्या काफी अधिक है।
NCLT द्वारा दिवालिया घोषित
4 जून 2025 को, NCLT ने कमल स्पंज को दिवालिया घोषित कर दिया। यह कंपनी कई वर्षों से चल रही थी और इस पर छोटे आपूर्तिकर्ताओं और विक्रेताओं का करोड़ों रुपए बकाया है। दिवालिया प्रक्रिया के तहत, छोटे आपूर्तिकर्ताओं को सबसे निचले स्तर पर रखा जाता है, जिसका अर्थ है कि उन्हें अपने पैसे का कुछ हिस्सा भी वापस मिलना मुश्किल है।
बड़े बैंकों की प्राथमिकता
जहां बड़े बैंकों और वित्तीय संस्थानों को पहले भुगतान किया जाता है, वहीं छोटे व्यवसायियों को हाशिए पर धकेल दिया जाता है। सतना के एक छोटे आपूर्तिकर्ता ने कहा, 'मैंने कंपनी को ₹60 लाख का माल दिया था, लेकिन मुझे एक रुपया भी नहीं मिला। यह मेरी जीवन भर की बचत थी। अब कंपनी दिवालिया है, और हम कुछ नहीं कर सकते। यह तो सीधा धोखा है।'
कमजोर गवर्नेंस और दागी प्रमोटर
कमल स्पंज के पतन के पीछे कंपनी के प्रमुख पवन कुमार अहलूवालिया का विवादित इतिहास भी एक महत्वपूर्ण कारण है। अहलूवालिया पहले से ही कानूनी समस्याओं में फंसे हुए हैं। 2017 के कोल गेट घोटाले में उन्हें दोषी ठहराया गया था, जिसके बाद उन्हें सजा और जुर्माना भी भुगतना पड़ा।
कानून की खामियां और नैतिकता का संकट
हालांकि IBC जैसे कड़े कानून मौजूद हैं, छोटे आपूर्तिकर्ता अक्सर हाशिए पर रह जाते हैं। यह केवल कानून की कमजोरी नहीं, बल्कि एक गहरा नैतिक संकट भी है। सरकार और उद्योग को मिलकर ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। निदेशकों की जवाबदेही को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए और नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है ताकि नियमों का उल्लंघन करने वालों को सजा मिल सके।