ट्रंप की नीतियों से अमेरिका की आर्थिक स्थिति पर खतरा: स्टीव हैंके
ट्रंप की नीतियों का असर
स्टीव हैंके का बयान
अमेरिका के प्रमुख आर्थिक विश्लेषक स्टीव हैंके ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आर्थिक नीतियों, विशेषकर उच्च टैरिफ दरों पर चिंता व्यक्त की है। उनका मानना है कि ये नीतियां अमेरिका को गंभीर आर्थिक मंदी की ओर ले जा सकती हैं। हैंके ने पाकिस्तान के साथ अमेरिका की बढ़ती नजदीकियों पर भी अपने विचार साझा किए।
हैंके, जो पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के सलाहकार रह चुके हैं, ने कहा कि भारत को इन नीतियों का नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने बताया कि ट्रंप की नीतियां भारत से दूरी बना सकती हैं, जबकि पाकिस्तान के साथ उनके दोस्ताना संबंध आर्थिक और भू-राजनीतिक समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं।
ट्रंप पर विश्वास की कमी
स्टीव हैंके ने ट्रंप की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए कहा कि वे ऐसे व्यक्ति हैं जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ट्रंप सुबह मोदी से हाथ मिला सकते हैं और रात में उनकी पीठ में छुरा घोंप सकते हैं। उनका मानना है कि भारत सरकार को अमेरिका की दोस्ती पर भरोसा नहीं करना चाहिए।
हैंके ने यह भी कहा कि चीन के पास अमेरिका से अधिक शक्ति है, विशेषकर माइनिंग, मेटलर्जी और मटेरियल साइंस में। उन्होंने चेतावनी दी कि ट्रंप भारत से दूर जा रहे हैं और पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे हैं, जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हो रहा है।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति
हैंके ने चेतावनी दी कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है और इसके परिणाम केवल कीमतों में वृद्धि तक सीमित नहीं रहेंगे। उनका कहना है कि पिछले ढाई वर्षों से अमेरिका में पैसे की सप्लाई कम हो गई है, जिससे अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका मंदी की कगार पर है और ये नीतियां विनाशकारी साबित हो सकती हैं। उन्होंने नेपोलियन के एक कथन का उल्लेख करते हुए कहा कि कभी भी अपने दुश्मन को तब परेशान न करें जब वह खुद को नष्ट करने की प्रक्रिया में हो।
टैरिफ और महंगाई का संबंध
हैंके ने बताया कि टैरिफ एक प्रकार का टैक्स है जो दूसरे देशों से आने वाले सामान पर लगाया जाता है, जिससे सामान महंगा हो जाता है। इससे व्यापार में कमी आती है और अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है। ट्रंप ने कई देशों के खिलाफ उच्च टैरिफ लागू किए हैं, जिससे अमेरिका में आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी।
इससे लोगों की जेब पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और विदेशी कंपनियों का मुनाफा घटेगा, जिससे वे अन्य बाजारों की तलाश करेंगी।