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नोटबंदी के 9 साल: क्या हासिल हुआ और क्या खोया?

8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा ने देश में हलचल मचा दी। इस लेख में हम जानेंगे कि 9 साल बाद इस निर्णय के क्या परिणाम सामने आए हैं। क्या काला धन खत्म हुआ? डिजिटल भुगतान में वृद्धि ने क्या बदलाव लाए? इसके साथ ही, छोटे उद्योगों और ग्रामीण बाजारों पर इसके नकारात्मक प्रभावों पर भी चर्चा की जाएगी। क्या यह निर्णय सही था? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

नोटबंदी का ऐलान

नई दिल्ली: 9 साल पहले, 8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपये के नोटों को तत्काल प्रभाव से बंद करने की घोषणा की थी। इस निर्णय ने पूरे देश में हलचल मचा दी थी। सरकार का कहना था कि इसका उद्देश्य काले धन का सफाया करना, आतंकवाद के वित्तपोषण पर रोक लगाना और नकली मुद्रा को समाप्त करना था। लेकिन अब, 9 साल बाद, यह सवाल उठता है कि क्या नोटबंदी ने अपने लक्ष्यों को पूरा किया?


कैश की कमी और नए नोट

उस समय नकदी की भारी कमी महसूस की गई। इस स्थिति को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक ने 2000 रुपये का नोट जारी किया ताकि लेन-देन में सहूलियत हो सके। हालांकि, लोगों को राहत मिलने में कई महीने लग गए। बैंकों और एटीएम के बाहर लंबी कतारें आम हो गईं। इसके बाद 2017 में 200 रुपये का नया नोट भी जारी किया गया।


क्या काला धन समाप्त हुआ?

मई 2023 में RBI ने 2000 रुपये के नोट को वापस लेने का निर्णय लिया। हालांकि, इसे अब भी वैध मुद्रा माना जाता है, लेकिन बैंक में यह नोट उपलब्ध नहीं है। 2016 की नोटबंदी के बाद बंद किए गए 15.44 लाख करोड़ रुपये में से लगभग 15.31 लाख करोड़ रुपये बैंकिंग प्रणाली में लौट आए। इसका मतलब है कि 99 प्रतिशत से अधिक नकदी फिर से 'सफेद' हो गई। इससे यह सवाल उठता है कि क्या काला धन वास्तव में समाप्त हुआ या उसकी प्रकृति बदल गई।


नोटबंदी के फायदे

हालांकि नकली नोटों की समस्या में कुछ कमी आई है, लेकिन यह पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है। आज भी देश के विभिन्न हिस्सों से नकली नोटों की बरामदगी की खबरें आती हैं। लेकिन नोटबंदी ने भारत में एक बड़ा डिजिटल परिवर्तन लाने में मदद की। नकद की कमी के कारण लोगों ने डिजिटल भुगतान को अपनाना शुरू किया। Paytm, PhonePe, Google Pay जैसे ऐप्स ने लेन-देन के तरीके को बदल दिया।


UPI ट्रांजेक्शन की वृद्धि

आज भारत में हर दिन लगभग 14 करोड़ से अधिक UPI ट्रांजेक्शन होते हैं, जो 2016 की तुलना में हजार गुना अधिक हैं। देश के छोटे दुकानदारों से लेकर सब्जी विक्रेताओं तक अब QR कोड के माध्यम से भुगतान स्वीकार कर रहे हैं। नोटबंदी के एक साल के भीतर ही डिजिटल भुगतान की लहर पूरे देश में फैल गई।


नुकसान उठाने वाले लोग

हालांकि इसके नकारात्मक प्रभाव भी रहे। छोटे उद्योग, ग्रामीण बाजार और नकद पर निर्भर क्षेत्रों को भारी नुकसान हुआ। अर्थव्यवस्था पर इसका प्रभाव इतना गहरा था कि GDP में गिरावट देखी गई। नोटबंदी पर राजनीतिक बहस आज भी जारी है कि क्या यह निर्णय सही था या नहीं।