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बॉम्बे हाई कोर्ट ने पुणे बम विस्फोट मामले में आरोपी को दी जमानत

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2012 के पुणे बम विस्फोट मामले में आरोपी फारूक शौकत बागवान को जमानत दी है। अदालत ने लंबी हिरासत और समानता के सिद्धांत का हवाला देते हुए यह निर्णय लिया। बागवान पिछले 12 वर्षों से हिरासत में थे, और उनके खिलाफ कई गंभीर आरोप हैं। कोर्ट ने जमानत देते समय कुछ सख्त शर्तें भी लगाई हैं, जिसमें एटीएस को रिपोर्टिंग और यात्रा पर प्रतिबंध शामिल हैं। इस मामले में आगे की सुनवाई की संभावना पर भी चर्चा की गई है।
 

जमानत का फैसला

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2012 के पुणे बम विस्फोट मामले में आरोपी फारूक शौकत बागवान को जमानत प्रदान की है। अदालत ने लंबी हिरासत और समानता के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए यह निर्णय लिया। 39 वर्षीय बागवान पिछले 12 वर्षों से हिरासत में थे, लेकिन अब तक मुकदमे का निष्कर्ष नहीं निकला है। अदालत ने कहा, “समानता का सिद्धांत पूरी तरह से लागू होता है, इसलिए अपीलकर्ता जमानत का हकदार है।”


आरोपों का विवरण

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, बागवान को दिसंबर 2012 में गिरफ्तार किया गया था। उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC), विस्फोटक अधिनियम, शस्त्र अधिनियम, गैरकानूनी गतिविधि (निवारण) अधिनियम (यूएपीए), और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत आरोप लगाए गए हैं।


पुणे बम विस्फोट का मामला

बागवान पर आरोप क्या हैं?

यह मामला 1 अगस्त, 2012 को पुणे में हुए पांच कम तीव्रता वाले बम विस्फोटों से संबंधित है, जो रात 7:25 से 11:30 बजे के बीच हुए। इन हमलों में एक व्यक्ति घायल हुआ, और जंगली महाराज रोड पर एक साइकिल की टोकरी में मिले छठे बम को निष्क्रिय कर दिया गया। प्रारंभ में, इस मामले को डेक्कन पुलिस स्टेशन में दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में इसे महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधी दस्ते (एटीएस) को सौंपा गया।


जांच और साक्ष्य

जांच के दौरान पता चला कि ये हमले इंडियन मुजाहिदीन के कतील सिद्दीकी की हिरासत में मौत का प्रतिशोध थे। बागवान पर सिम कार्ड के लिए जाली दस्तावेज बनाने और अपने दुकान को साजिश की योजना बनाने के लिए बैठक स्थल के रूप में उपयोग करने का आरोप था।


जमानत पर अदालत का तर्क

जमानत पर कोर्ट का तर्क

अतिरिक्त लोक अभियोजक विनोद चाटे ने जमानत का विरोध करते हुए बागवान की साजिश में भूमिका और उनके कबूलनामे पर जोर दिया। हालांकि, बागवान के वकील मुबिन सोलकर ने तर्क किया कि सह-आरोपी मुनीब इकबाल मेमन को 2024 में हाई कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। उन्होंने यह भी बताया कि 12 सालों में 170 में से केवल 27 गवाहों की जांच हुई है।


कोर्ट की शर्तें

जमानत पर शर्तें

बॉम्बे हाई कोर्ट ने जमानत देते समय कुछ सख्त शर्तें लगाई हैं, जिसमें 1 लाख रुपये का बॉंड, एटीएस को हर महीने रिपोर्टिंग, और बाहर जाने की यात्रा पर प्रतिबंध शामिल हैं।