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भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता में सोयाबीन का विवाद: किसानों की सुरक्षा प्राथमिकता

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में सोयाबीन के मुद्दे पर रुकावट आ गई है, जिससे किसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी जा रही है। अमेरिका चाहता था कि भारत अमेरिकी सोयाबीन को टैक्स फ्री अनुमति दे, लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया। जानें इस विवाद के पीछे की वजह और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता में रुकावट

किसानों द्वारा खेतों में लिए गए कुछ निर्णय कभी-कभी राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकते हैं। आज की चर्चा केवल एक बीज की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और विदेशी दबाव के बीच की लड़ाई बन गई है। जो आशंका जताई जा रही थी, वह अब सच साबित हो गई है। अमेरिका और भारत के बीच व्यापार वार्ता अंतिम चरण में थी, लेकिन अचानक यह रुक गई, और इसका कारण अमेरिकी सोयाबीन है। भारत और अमेरिका के बीच अब तक पांच राउंड की व्यापार बैठकें हो चुकी थीं, जबकि छठा राउंड अगस्त के अंत में निर्धारित था। लेकिन अचानक खबर आई कि यूएस ट्रेड टॉक होल्ड पर चली गई है। अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल, जो 25 अगस्त को भारत आने वाला था, ने अपना दौरा रद्द कर दिया है। इसका सीधा अर्थ है कि अंतरिम व्यापार समझौता फाइनल होने वाला था, लेकिन अब यह अटक गया है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इसका मुख्य कारण भारत का अमेरिकी सोयाबीन को अनुमति न देना है। अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक है, और वहां की बड़ी कंपनियों को नए बाजारों की आवश्यकता है।


भारत का खाद्य तेल और प्रोटीन बाजार

भारत खाद्य तेल और प्रोटीन का सबसे बड़ा बाजार है, जहां दालों और तेलों की भारी खपत होती है। पॉल्ट्री और डेयरी उद्योग के लिए प्रोटीन की मांग हमेशा बनी रहती है। अमेरिका चाहता था कि भारत अपने दरवाजे खोले और अमेरिकी सोयाबीन को टैक्स फ्री अनुमति दे। लेकिन भारत ने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिकी सोयाबीन के लिए कोई एंट्री नहीं है। भारत के किसानों के लिए सोयाबीन सबसे महत्वपूर्ण फसल है, और मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान जैसे राज्यों में लाखों किसान इसे उगाते हैं। यदि अमेरिका का सस्ता सोयाबीन भारत में आ गया, तो भारतीय किसानों की फसलें बिकने में कठिनाई होगी, जिससे कीमतें गिरेंगी और छोटे किसानों की स्थिति खराब होगी। यही कारण है कि भारत ने सोयाबीन, कॉर्न, एथनॉल और डेयरी के लिए चार रेड लाइन खींची थी।


अमेरिकी सोयाबीन निर्यात परिषद की प्रतिक्रिया

अमेरिकी सोयाबीन निर्यात परिषद (USSEC) के सीईओ जिम सटर ने हाल ही में एक मीडिया चैनल से बात करते हुए कहा कि अमेरिका-भारत व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच कई व्यापारिक मुद्दों का समाधान हो सकता है। इससे भारतीय पोल्ट्री उद्योग को 'स्थायी रूप से सत्यापित' अमेरिकी सोयाबीन फ़ीड उत्पादों तक पहुंच प्राप्त करने में मदद मिलेगी। सटर ने यह भी कहा कि वह भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) उत्पादों से जुड़ी नियामक चुनौतियों को गैर-शुल्क बाधा नहीं मानते। अमेरिकी सोया किसानों के पास भारत और अन्य जगहों पर आपूर्ति करने के लिए जीएम और गैर-जीएम दोनों प्रकार के उत्पाद उपलब्ध हैं। यह बात भारत में जीएम बीजों और उत्पादों से संबंधित नियामक प्रतिबंधों के संदर्भ में सामने आई है, जिन्हें व्यापार में बाधा माना गया है।


भारत की स्थिति स्पष्ट

भारत ने शुरुआत में थोड़ा लचीलापन दिखाया था और नॉन जीएम सोयाबीन और मक्का पर बातचीत की संभावना जताई थी। लेकिन जब अमेरिका ने बार-बार दबाव बनाना शुरू किया, तो भारत ने स्पष्ट कर दिया कि कृषि पर कोई समझौता नहीं होगा। अमेरिका अब टैरिफ को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करके भारत को झुकाना चाहता था। 30 जुलाई को ट्रंप ने भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा की थी, जिसके बाद 6 अगस्त को उन्होंने एक और निर्णय लिया, जिसमें भारत पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाने की बात कही गई। इस प्रकार, कुल मिलाकर भारत पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाया गया।