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भारत की कूटनीतिक चुप्पी: ईरान-इजराइल तनाव में संतुलन बनाए रखना

भारत की चुप्पी ईरान-इजराइल तनाव पर एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति भारत के आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा करती है। भारत को ईरान और इजराइल दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित रखना है, जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार प्रभावित न हो। चाबहार बंदरगाह में निवेश और रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग भी इस स्थिति में महत्वपूर्ण हैं। जानें कैसे भारत इस जटिल स्थिति को संभाल रहा है।
 

भारत की कूटनीतिक रणनीति

भारत की चुप्पी ईरान-इजराइल के बीच बढ़ते तनाव पर एक सोची-समझी कूटनीतिक रणनीति का हिस्सा है। यह रणनीति भारत के महत्वपूर्ण आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा करने के लिए बनाई गई है। भारत को यह सुनिश्चित करना है कि वह किसी भी पक्ष के साथ अपने संबंधों को खतरे में डाले बिना संतुलन बनाए रखे। यदि भारत ने इस स्थिति में कोई गलती की, तो यह 6.68 अरब डॉलर (लगभग 57,488 करोड़ रुपये) के व्यापार को खतरे में डाल सकता है।


भारत का ईरान के साथ व्यापार 1.68 अरब डॉलर और इजराइल के साथ 5 अरब डॉलर का है। ऊर्जा सुरक्षा भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसी कारण भारत ने चाबहार बंदरगाह में निवेश किया है। इसके अलावा, भारत और इजराइल के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी सहयोग भी बढ़ रहा है। इस जटिल स्थिति में, भारत को दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को संभालना है।


भारत की कूटनीतिक चुप्पी तनाव को कम करने, विकल्पों को बढ़ाने और अपने हितों की रक्षा करने के लिए एक रणनीति है। ईरान भारत से बासमती चावल का एक बड़ा आयातक है, और दोनों देशों के बीच अन्य उत्पादों का भी व्यापार होता है। चाबहार बंदरगाह में भारत का निवेश मध्य एशिया तक पहुंच के लिए महत्वपूर्ण है। इस व्यापार पर कोई भी नकारात्मक प्रभाव भारत के निर्यातकों और अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी हो सकता है।


भारत के इजराइल के साथ मजबूत संबंध हैं, विशेषकर रक्षा प्रौद्योगिकी और कृषि के क्षेत्र में। इजराइल भारत को अत्याधुनिक रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी प्रदान करता है, जो भारत की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। इस संबंध में कोई भी समझौता भारत की सामरिक क्षमताओं को प्रभावित कर सकता है। 6.68 अरब डॉलर का व्यापार आंकड़ा दर्शाता है कि भारत के दोनों देशों के साथ महत्वपूर्ण आर्थिक संबंध हैं।


होर्मुज जलडमरूमध्य वैश्विक तेल व्यापार का एक प्रमुख केंद्र है, और भारत अपनी कच्चे तेल की जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आयात करता है। इस मार्ग के बाधित होने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा को खतरा हो सकता है। तेल की कीमतों में वृद्धि और आपूर्ति में व्यवधान से भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।


भारत चाबहार बंदरगाह को रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मानता है, क्योंकि यह पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों के साथ व्यापार और संपर्क प्रदान करता है। यदि ईरान-इजराइल संघर्ष बढ़ता है, तो चाबहार परियोजना का भविष्य अनिश्चित हो सकता है।


भारत के लिए इजराइल एक प्रमुख साझेदार है, जो सैन्य हार्डवेयर, खुफिया जानकारी और अत्याधुनिक तकनीक में सहयोग करता है। किसी भी पक्ष में झुकाव इन महत्वपूर्ण संबंधों को नुकसान पहुंचा सकता है। खाड़ी देशों, विशेषकर ईरान, में भारतीय चाय के प्रमुख खरीदार हैं। यदि समुद्री मार्ग बाधित होता है, तो इसका भारतीय चाय निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा, जिससे हजारों किसान और निर्यातक प्रभावित होंगे।


इसलिए, भारत किसी भी पक्ष का खुलकर समर्थन या विरोध नहीं करता है, बल्कि स्थिति को शांत करने, अपने हितों की रक्षा करने और विभिन्न विकल्पों की खोज करने पर ध्यान केंद्रित करता है।