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भारतीय रिज़र्व बैंक का हस्तक्षेप: रुपये में मजबूती का संकेत

बुधवार को भारतीय रिज़र्व बैंक ने रुपये को समर्थन देने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप किया, जिससे रुपये में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह कदम तब उठाया गया जब रुपये लगातार गिरावट के दौर से गुजर रहा था। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कार्रवाई रुपये की एकतरफा गिरावट को रोकने के लिए है। हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह मजबूती स्थायी नहीं हो सकती। जानें इस हस्तक्षेप के पीछे के कारण और इसके संभावित प्रभावों के बारे में।
 

रुपये के समर्थन में RBI की कार्रवाई

बुधवार को मुद्रा बाजार में एक महत्वपूर्ण घटना घटी, जब भारतीय रिज़र्व बैंक ने रुपये को समर्थन देने के लिए सक्रिय हस्तक्षेप किया। लगातार गिरावट के बाद, रुपये में कमजोरी की धारणा बन गई थी, जिस पर केंद्रीय बैंक ने सख्त कदम उठाया है।




हालिया जानकारी के अनुसार, RBI ने स्थानीय बाजार में डॉलर की बिक्री कर हस्तक्षेप किया, जिसके परिणामस्वरूप रुपये में लगभग एक प्रतिशत की वृद्धि हुई। यह उछाल पिछले सात महीनों में सबसे बड़ा माना जा रहा है। मंगलवार को ऐतिहासिक निचले स्तर पर बंद होने के बाद, बुधवार को रुपये ने 90 के स्तर के करीब वापसी की है।




कुछ हफ्तों से रुपये की गिरावट को लेकर बाजार में सवाल उठ रहे थे कि केंद्रीय बैंक ने हस्तक्षेप क्यों नहीं किया। व्यापारियों का मानना है कि हाल ही में डॉलर-रुपया स्वैप और उसके बाद की डॉलर बिक्री ने सट्टा पोजीशन लेने वालों को चौंका दिया है।




बैंकिंग क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि RBI का यह कदम यह दर्शाता है कि रुपये में केवल एकतरफा गिरावट को स्वीकार नहीं किया जाएगा। अक्टूबर में भी केंद्रीय बैंक ने इसी तरह की आक्रामक कार्रवाई की थी, जिससे अटकलों पर विराम लगा था।




हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह मजबूती स्थायी होगी, ऐसा कहना जल्दबाज़ी होगी। अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में देरी, विदेशी निवेशकों की निकासी और उच्च आयात के कारण डॉलर की मांग बनी हुई है। इस प्रकार, RBI का हस्तक्षेप फिलहाल दबाव कम करने का एक उपाय है, न कि किसी निश्चित स्तर की रक्षा का वादा।




यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस महीने अब तक विदेशी निवेशकों ने शेयर और बॉंड बाजार से बड़ी रकम निकाली है, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ा है। केंद्रीय बैंक की हालिया कार्रवाई से सट्टेबाजों की पोजीशन खुली हैं, लेकिन आगे की दिशा वैश्विक संकेतों और नीति स्तर के निर्णयों पर निर्भर करेगी, ऐसा जानकार मानते हैं