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भारतीय रुपये की गिरावट: वैश्विक निवेशकों की चिंता बढ़ी

भारतीय रुपये की हालिया गिरावट ने वैश्विक निवेशकों के बीच चिंता का माहौल बना दिया है। अमेरिकी टैरिफ और विदेशी निवेशकों की निकासी के चलते रुपये में कमी आई है। जानें इसके पीछे के कारण, भारतीय शेयर बाजार पर इसके प्रभाव, और भविष्य की संभावनाएं। क्या भारत अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में सफल होगा? इस लेख में जानें।
 

भारतीय रुपये की स्थिति

हाल के दिनों में भारतीय रुपये की गिरावट ने अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के बीच चिंता का माहौल बना दिया है। अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव के चलते, भारतीय रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं की तुलना में सबसे अधिक प्रभावित हुआ है। इस वर्ष, डॉलर के मुकाबले रुपये में लगभग छह प्रतिशत की कमी आई है, और यह पहली बार 91.075 प्रति डॉलर के ऐतिहासिक निम्न स्तर पर पहुंच गया है।


कारण और प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए 50% तक के कड़े शुल्क, बढ़ता व्यापार घाटा, और विदेशी निवेशकों की निरंतर निकासी ने रुपये पर गंभीर दबाव डाला है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का वास्तविक प्रभावी विनिमय दर 96 तक गिर गया है, जो पिछले एक दशक में सबसे कम है। आमतौर पर, यह स्थिति मुद्रा में सुधार की संभावना को दर्शाती है, लेकिन इस बार स्थिति भिन्न है।


विदेशी निवेशकों की निकासी

इस वर्ष, विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से रिकॉर्ड 18 अरब डॉलर की निकासी की है। निवेश सलाहकारों का कहना है कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते की स्पष्टता आने तक यह प्रवृत्ति बदलने की संभावना कम है। जेबी ड्रैक्स होनोर के एशिया मैक्रो रणनीतिकार विवेक राजपाल के अनुसार, बाजार का धैर्य तेजी से समाप्त हो रहा है और निवेशकों को यह विश्वास चाहिए कि टैरिफ स्थायी नहीं हैं।


भविष्य की संभावनाएं

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता 2025 के अधिकांश समय तक चलती रही है। हालांकि, भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार ने हाल ही में संकेत दिया है कि मार्च 2026 तक किसी समझौते की संभावना है। इस बीच, एशिया के कई अन्य देशों को अमेरिका से राहत या अस्थायी समझौते मिल चुके हैं, जिससे भारत अपेक्षाकृत अधिक जोखिम में है।


कमजोर मुद्रा के प्रभाव

विशेषज्ञों का कहना है कि कमजोर मुद्रा आमतौर पर निर्यात को प्रतिस्पर्धी बनाकर टैरिफ के प्रभाव को कम कर सकती है, लेकिन जब शुल्क 50 प्रतिशत जैसे उच्च स्तर पर हों, तो केवल रुपये की गिरावट से संतुलन बनाना कठिन हो जाता है। व्यापार घाटा और पूंजी निकासी जैसी समस्याएं निकट भविष्य में कम होती नहीं दिख रही हैं।


भारतीय रिजर्व बैंक की भूमिका

एक रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक वर्तमान में बाजार की बुनियादी ताकतों के खिलाफ हस्तक्षेप करने के मूड में नहीं है, जिससे रुपये में और कमजोरी की आशंका बढ़ गई है। एचएसबीसी सहित कई ब्रोकरेज फर्मों का मानना है कि रुपये की तेज गिरावट भारतीय शेयरों के लिए जोखिम पैदा कर सकती है, भले ही दीर्घकालिक में मूल्यांकन आकर्षक दिखे।


निवेशकों की स्थिति

कुछ वैश्विक फंड मैनेजरों का मानना है कि भू-राजनीतिक जोखिम का प्रभाव शायद जरूरत से ज्यादा आंका जा रहा है, लेकिन वर्तमान में निवेशक रुपये में बड़ी वापसी करते नहीं दिख रहे हैं। डॉलर आधारित निवेशकों के लिए यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि कमजोर रुपया निर्यात की प्रतिस्पर्धा बढ़ाता है, जबकि विदेशी निवेश के रिटर्न पर दबाव डालता है। जब तक अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर ठोस प्रगति नहीं होती, रुपये पर दबाव बना रह सकता है।