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राज्यों का बढ़ता कर्ज: भविष्य को गिरवी रखने की चिंता

हाल ही में आई सीएजी की रिपोर्ट ने राज्यों के बढ़ते कर्ज के संकट को उजागर किया है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों का कर्ज 2013-14 से 2022-23 के बीच तीन गुना बढ़ गया है, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति चिंताजनक हो गई है। इस लेख में जानें कि कैसे सरकारें कर्ज का उपयोग नियमित खर्चों और वोट खरीदने के लिए कर रही हैं, और यह हमारे भविष्य को कैसे प्रभावित कर सकता है। क्या यह स्थिति हमारे आर्थिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है? जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
 

राज्यों के कर्ज का बढ़ता बोझ

स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन के अनुसार, सरकारों को कर्ज का उपयोग सामान्यतः निवेश के लिए करना चाहिए। लेकिन हाल के आंकड़े दर्शाते हैं कि सरकारें कर्ज का इस्तेमाल नियमित खर्चों के लिए कर रही हैं। इसके साथ ही, वोट खरीदने के लिए भी बड़ी राशि खर्च की जा रही है।


राज्यों पर कर्ज का बढ़ता बोझ नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से सामने आया है। रिपोर्ट के अनुसार, राज्य अपने भविष्य को गिरवी रख रहे हैं। 2013-14 से 2022-23 के बीच, राज्यों का कर्ज तीन गुना से अधिक बढ़कर 17.57 लाख करोड़ रुपये से 59.60 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सकल प्रदेश घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) के संदर्भ में, कर्ज का अनुपात 16.66 प्रतिशत से बढ़कर 23 प्रतिशत हो गया है। वहीं, राजस्व की तुलना में कर्ज 128 प्रतिशत से बढ़कर 191 प्रतिशत हो गया है। इसका मतलब है कि राज्यों की आमदनी से 91 प्रतिशत अधिक खर्च किया जा रहा है।


स्पष्ट है कि यह अतिरिक्त राशि कर्ज के माध्यम से जुटाई जा रही है। सीएजी की यह रिपोर्ट पहली बार इस तरह के आंकड़े प्रस्तुत करती है, लेकिन इसमें केंद्र के कर्ज को शामिल नहीं किया गया है। इस दौरान केंद्र ने भी कर्ज लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। 2014 में भारत सरकार का कुल कर्ज लगभग 55 लाख करोड़ रुपये था, जो सितंबर 2023 तक 161 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। मुख्य प्रश्न यह है कि यह पैसा कहां खर्च हुआ? स्वस्थ वित्तीय प्रबंधन के अनुसार, सरकारों को कर्ज का उपयोग सामान्यतः उत्पादक निवेश के लिए करना चाहिए, जिससे दीर्घकालिक बोझ न बने। लेकिन वर्तमान में, सरकारें कर्ज का उपयोग नियमित खर्चों के लिए कर रही हैं। इसके अलावा, वोट खरीदने के लिए भी बड़ी राशि खर्च की जा रही है।


इसका ताजा उदाहरण बिहार में देखा जा सकता है, जहां मुख्यमंत्री ने हाल ही में धन बांटने की योजनाओं की झड़ी लगाई है। लेकिन इस तरह का खर्च भविष्य को गिरवी रखने जैसा है। पिछले केंद्रीय बजट में कुल व्यय का 20 प्रतिशत हिस्सा केवल कर्ज चुकाने के लिए निर्धारित किया गया था। कई राज्यों की स्थिति इससे भी खराब हो सकती है। बढ़ते कर्ज के साथ, ये देनदारियां लगातार बढ़ती जा रही हैं। इसका मतलब है कि नए कर्ज के माध्यम से पुराने कर्ज और ब्याज चुकाने की मजबूरी बढ़ती जा रही है। यह अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारा देश किस दिशा में बढ़ रहा है!