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राज्यों के कर्ज में चिंताजनक वृद्धि: CAG की नई रिपोर्ट

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) की हालिया रिपोर्ट में राज्यों के कर्ज में तीन गुना वृद्धि की चिंता जताई गई है। मार्च 2014 में 19.8 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर मार्च 2023 में 59.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने वाले इस कर्ज का बड़ा हिस्सा पुराने कर्ज चुकाने में खर्च हो रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि विकास कार्यों के लिए धन की कमी हो रही है, जिससे देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
 

राज्यों की आर्थिक स्थिति पर गंभीर चिंता

भारत के नियंत्रक और महालेखापरीक्षक (CAG) द्वारा जारी की गई हालिया रिपोर्ट में राज्यों की आर्थिक स्थिति को लेकर एक गंभीर चेतावनी दी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दस वर्षों में राज्यों पर कर्ज का बोझ तीन गुना से अधिक बढ़ गया है। मार्च 2014 में सभी राज्यों का कुल कर्ज 19.8 लाख करोड़ रुपये था, जो मार्च 2023 तक बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। यह आंकड़ा राज्यों की वित्तीय स्थिति के लिए एक गंभीर संकेत है।


CAG की रिपोर्ट केवल कर्ज के बढ़ते आंकड़ों पर ही नहीं, बल्कि उन खतरनाक प्रवृत्तियों पर भी प्रकाश डालती है जो देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हैं। रिपोर्ट में यह चिंता जताई गई है कि कई राज्य अपने बजट का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 27.8%) नए कर्ज के माध्यम से पुराने कर्ज और उसके ब्याज का भुगतान करने में खर्च कर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि विकास कार्यों के लिए धन की कमी हो रही है।


इसके अलावा, रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि राज्यों द्वारा लिए गए कर्ज का उपयोग विकास कार्यों जैसे सड़कों, स्कूलों या अस्पतालों में कम और मुफ्त योजनाओं या सब्सिडी में अधिक किया जा रहा है। इससे राज्य की आय में वृद्धि नहीं हो रही है, बल्कि कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है।


2022-23 में, राज्यों ने अपने कुल राजस्व का 6.4% हिस्सा केवल कर्ज के ब्याज चुकाने में खर्च किया, जो एक बहुत बड़ी राशि है। यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि यदि राज्यों का अधिकांश धन कर्ज और ब्याज चुकाने में ही खर्च होता रहेगा, तो उनके पास नई सड़कों, स्कूलों या स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए कोई धन नहीं बचेगा।