दिल्ली में शिक्षा क्रांति: केजरीवाल सरकार के दावों की सच्चाई
दिल्ली में शिक्षा सुधार की कहानी
अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में शिक्षा सुधार का प्रचार किया। पार्टी ने भ्रष्टाचार समाप्त करने के वादे के साथ सत्ता में कदम रखा था। हालांकि, जब उन्होंने पूर्ण बहुमत हासिल किया, तो लोकपाल और भ्रष्टाचार के मुद्दे पीछे छूट गए और शिक्षा सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया। यह दावा किया गया कि दिल्ली में शिक्षा प्रणाली इतनी मजबूत हो गई है कि लोग अपने बच्चों को निजी स्कूलों के बजाय सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने लगे हैं। सरकारी स्कूलों के प्रदर्शन में सुधार के बड़े-बड़े दावे किए गए। कई राज्यों के नेता भी दिल्ली की शिक्षा क्रांति का अवलोकन करने आए। लेकिन क्या वास्तव में कोई शिक्षा क्रांति हुई थी?
अब केजरीवाल को सत्ता से बाहर हुए तीन महीने हो चुके हैं और शिक्षा सुधार की चर्चा लगभग समाप्त हो चुकी है। यह स्पष्ट हो रहा है कि दिल्ली के अधिकांश स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज की व्यवस्था नहीं है। नई सरकार अब स्कूलों में स्मार्ट क्लासेज के लिए फंड आवंटित कर रही है। स्थायी शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हुई है और जो अतिथि शिक्षक थे, उन्हें स्थायी करने का वादा अधूरा रह गया है। पढ़ाई की तात्कालिक व्यवस्था जारी है। इसके अलावा, स्मार्ट क्लासरूम बनाने में घोटाले का मामला भी सामने आया है, जिसकी जांच दिल्ली की विजिलेंस टीम कर रही है। मनीष सिसोदिया को पूछताछ के लिए बुलाया गया था, लेकिन वे उपस्थित नहीं हुए। अब विजिलेंस ने उन्हें 20 जून को फिर से बुलाया है। सत्येंद्र जैन को भी इस मामले में बुलाया गया था और उनसे पूछताछ की गई है। हर साल जेईई मेन्स और नीट के परिणामों के बाद दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों की सफलता की जो चर्चा होती थी, वह अब सुनाई नहीं दे रही है।