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भारत की शिक्षा प्रणाली: क्या यह छात्रों को भविष्य के लिए तैयार कर रही है?

भारत की शिक्षा प्रणाली पर हालिया प्रकाश सर्वेक्षण ने छात्रों की ज्ञान की कमी को उजागर किया है। छठी कक्षा के 43% छात्र पाठ्य सामग्री को समझ नहीं पाते, जबकि नौवीं कक्षा के 63% छात्र बुनियादी संख्यात्मक पैटर्न को नहीं समझते। यह स्थिति गंभीर चिंता का विषय है, जो यह सवाल उठाती है कि क्या हमारी शिक्षा प्रणाली छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार कर रही है। क्या यह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है? जानिए इस विषय पर और क्या चिंताएँ हैं।
 

शिक्षा प्रणाली की गंभीरता

क्या भारत की शिक्षा प्रणाली छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार कर रही है, या यह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है? प्रकाश सर्वेक्षण के परिणाम चिंताजनक हैं। हमारे बच्चों की नींव कमजोर है।


भारत में छठी कक्षा के 43 प्रतिशत छात्र पाठ्य सामग्री को समझ नहीं पाते हैं। इसी कक्षा के 54 प्रतिशत छात्र संख्याओं की तुलना करने या बड़ी संख्याओं को पढ़ने में असमर्थ हैं। नौवीं कक्षा के 63 प्रतिशत छात्र संख्याओं के मूलभूत पैटर्न और भिन्न एवं पूर्णांक जैसे संख्यात्मक समूहों को नहीं समझते। ये चिंताजनक आंकड़े भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए -प्रकाश राष्ट्रीय सर्वेक्षण- से सामने आए हैं। यह सर्वेक्षण नेशनल अचीवमेंट सर्वे (NAS) के नाम से भी जाना जाता है, और यह सरकार का अपना अध्ययन है, न कि किसी एनजीओ का।


यह सर्वेक्षण पिछले दिसंबर में आयोजित किया गया था, और इसके परिणाम हाल ही में जारी किए गए हैं। इस दौरान तीसरी, छठी और नौवीं कक्षाओं के 21 लाख 15 हजार से अधिक छात्रों की पढ़ाई की क्षमता का मूल्यांकन किया गया। ये छात्र 36 राज्यों के 781 जिलों के 74,229 स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं। सर्वेक्षण से प्राप्त आंकड़े देशभर में शिक्षा की स्थिति को दर्शाते हैं। गणित के संदर्भ में सबसे बड़ी समस्या सामने आई है, लेकिन अन्य विषयों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। उदाहरण के लिए, भूगोल से संबंधित सवालों पर 51 प्रतिशत छात्रों ने गलत उत्तर दिए। इसी तरह, पंचायतों के कार्य या त्योहारों का मौसम से संबंध जैसे प्रश्नों पर भी अधिकांश छात्रों का ज्ञान कमजोर पाया गया।


इसलिए, यह सवाल उठता है कि क्या भारत की शिक्षा प्रणाली छात्रों को उनके भविष्य के लिए तैयार कर रही है, या यह केवल औपचारिकता बनकर रह गई है? आधुनिक युग में विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग और गणित में दक्षता और सामाजिक-सांस्कृतिक जागरूकता के बिना एक अग्रणी राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है। यदि बच्चों की नींव कमजोर हो जाए, तो आगे की सभी कोशिशें व्यर्थ हो जाएंगी। प्रकाश सर्वेक्षण के परिणाम गंभीर चिंता का विषय हैं, लेकिन यह चिंता कौन उठाएगा, यह भी एक बड़ा सवाल है।