हरियाणा में प्राथमिक शिक्षा के नियमों में बदलाव: छह साल से कम उम्र के बच्चों को नहीं मिलेगा प्रवेश
हरियाणा सरकार का नया निर्णय
हरियाणा सरकार ने प्राथमिक शिक्षा से संबंधित एक लंबे समय से चल रहे भ्रम को समाप्त करने का निर्णय लिया है। अब राज्य के किसी भी सरकारी या मान्यता प्राप्त स्कूल में छह साल से कम उम्र के बच्चों को पहली कक्षा में प्रवेश नहीं दिया जाएगा। इसके लिए हरियाणा स्कूल शिक्षा नियम 2011 में संशोधन किया जाएगा, ताकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और आरटीई अधिनियम 2009 के अनुरूप हो सके.
निर्णय का कारण
सरकार का कहना है कि यह कदम बच्चों की मानसिक और शैक्षणिक तैयारी को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है.
क्यों था नियमों में विरोधाभास
पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा में कक्षा एक में दाखिले की उम्र को लेकर दो अलग-अलग नियम लागू थे। आरटीई नियम 2011 में कक्षा एक के लिए उम्र पांच से छह साल बताई गई थी, जबकि आरटीई अधिनियम 2009 और राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में न्यूनतम उम्र छह साल निर्धारित की गई थी. इस अंतर के कारण स्कूल, अभिभावक और शिक्षा विभाग सभी असमंजस में थे.
मामला हाई कोर्ट तक कैसे पहुंचा
फरवरी 2025 में हरियाणा सरकार ने स्पष्ट किया कि कक्षा एक में दाखिले की न्यूनतम उम्र छह साल होगी, साथ ही छह महीने की छूट दी जाएगी. इसके बाद, पांच से छह साल के बच्चों के अभिभावकों ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं, जिसमें उन्होंने कहा कि जब तक 2011 के नियम नहीं बदले जाते, तब तक पुराने प्रावधान लागू रहेंगे.
सरकार को नीति पर पुनर्विचार क्यों करना पड़ा
लगातार बढ़ते मामलों और कानूनी उलझनों के कारण सरकार पर दबाव बढ़ा। शिक्षा विभाग को हर दाखिले सत्र में अदालतों के चक्कर लगाने पड़ रहे थे. इसी बीच, प्राथमिक शिक्षा निदेशक विवेक अग्रवाल ने हाई कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर स्थिति स्पष्ट की.
विशेषज्ञों की राय
शिक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय बच्चों के हित में है। उनका कहना है कि छह साल से पहले औपचारिक पढ़ाई शुरू करने से बच्चों पर अनावश्यक शैक्षणिक दबाव पड़ता है. इसके अलावा, फाउंडेशनल लर्निंग स्टेज को मजबूत करना आवश्यक है.
आगे की प्रक्रिया
मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बाद संशोधित नियम अधिसूचित किए जाएंगे। सभी स्कूलों को एक समान आयु मानदंड अपनाने होंगे, जिससे भविष्य में दाखिलों को लेकर कानूनी विवादों में कमी आएगी.
महत्वपूर्ण निर्णय
यह निर्णय पूरे राज्य में एक समान नियम लागू करेगा, जिससे अभिभावकों और स्कूलों की उलझन खत्म होगी और बच्चों की मानसिक और शैक्षणिक तैयारी में सुधार होगा.