हलगा गांव में पढ़ाई का अनोखा माहौल: डिजिटल ब्रेक से बढ़ी एकाग्रता
गांव में पढ़ाई का उत्सव
हलगा गांव में शिक्षा का माहौल किसी उत्सव से कम नहीं है। यहां का जश्न शोर से नहीं, बल्कि सन्नाटे से भरा है। जैसे ही शाम 7 बजे सायरन बजता है, घरों में टीवी की स्क्रीन बंद हो जाती हैं और मोबाइल फोन भी साइलेंट मोड में चले जाते हैं। गांववाले जानबूझकर डिजिटल दुनिया से दूरी बना लेते हैं, ताकि बच्चों की बोर्ड परीक्षा की तैयारी बिना किसी रुकावट के हो सके। इस पहल की चर्चा अब आसपास के क्षेत्रों में भी हो रही है।
गांव की सोच से शुरू हुआ अभियान
यह पहल पूरी तरह से गांव की सामूहिक सोच और सहमति से शुरू की गई है। इसका उद्देश्य बच्चों को पढ़ाई के लिए एक बेहतर माहौल प्रदान करना है। शाम 7 से 9 बजे के बीच गांव की गलियां शांत रहती हैं, जहां किताबों की खड़खड़ाहट और परिवार की बातचीत सुनाई देती है। बच्चे SSLC जैसे महत्वपूर्ण बोर्ड परीक्षा की तैयारी में अधिक ध्यान केंद्रित कर पा रहे हैं। इस दौरान बड़े भी परिवार को समय दे रहे हैं। यह छोटा सा गांव अब एक बड़ी मिसाल बनता नजर आ रहा है।
नया टाइम-टेबल, गांव की सहमति से लागू
हलगा गांव में यह पहल पंचायत और स्थानीय लोगों की आपसी समझ से शुरू हुई। सायरन डिजिटल उपकरणों को बंद करने का संकेत देता है। गांव के लोग इसे नियम नहीं, बल्कि अपनी जिम्मेदारी मानते हैं। इससे बच्चों को पढ़ाई के लिए एक शांत और ध्यान केंद्रित माहौल मिल रहा है। यह निर्णय दर्शाता है कि जब गांव एकजुट होकर सोचता है, तो इसका प्रभाव पूरे सिस्टम पर पड़ता है।
पढ़ाई के लिए समय, टीवी नहीं
गांव की महिलाएं भी इस मुहिम में शामिल हैं। वे टीवी सीरियल्स देखने के बजाय घर के काम निपटा रही हैं। बच्चे मोबाइल पर समय बर्बाद करने के बजाय पढ़ाई में जुट जाते हैं। यह 2 घंटे का डिजिटल ब्रेक बच्चों की एकाग्रता को पहले से बेहतर बना रहा है। स्क्रीन टाइम की आदत कम होने से पढ़ाई की गति में सुधार हुआ है। गांव की दिनचर्या में यह बदलाव अब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
SSLC बोर्ड परीक्षा से पहले तनाव कम
यह अभियान विशेष रूप से SSLC बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रहे बच्चों के लिए सहायक साबित हो रहा है। घर के बड़े भी इस समय बच्चों को परेशान नहीं करते। 2 घंटे की शांति से पढ़ाई का दबाव कम हो रहा है और तैयारी मजबूत हो रही है। छात्रों का कहना है कि बिना स्क्रीन टाइम के पढ़ाई करना अब अधिक आसान लगता है।
महाराष्ट्र से मिली प्रेरणा
हलगा गांव ने यह विचार महाराष्ट्र में चल रहे नो-स्क्रीन अभियानों से लिया है। इसका उद्देश्य बच्चों को डिजिटल लत से दूर रखना है। लोगों का समर्थन बढ़ता गया और यह मुहिम मजबूत होती गई। अब यह गांव पड़ोसी गांवों के लिए भी प्रेरणा बन रहा है। सोशल मीडिया की लत को कम करने का यह तरीका जमीन पर प्रभावी साबित हो रहा है।
छोटी पहल, बड़ा संदेश
गांव वालों का मानना है कि यह कदम केवल 2 घंटे के लिए टीवी और फोन बंद करने का नहीं है, बल्कि बच्चों के भविष्य को एक बेहतर दिशा देने का है। लोग मानते हैं कि स्क्रीन टाइम कम होने से पढ़ाई और परिवार दोनों को लाभ होगा। यह गांव साबित कर रहा है कि बदलाव बड़े शहरों से नहीं, बल्कि छोटी सोच से भी शुरू हो सकता है।