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उमराव जान: 44 साल बाद फिर से थिएटर में लौटेगी क्लासिक फिल्म

हिंदी सिनेमा की अमर कृति ‘उमराव जान’ 27 जून 2025 को 4K क्वालिटी में फिर से सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है। इस फिल्म में रेखा ने एक तवायफ की भूमिका निभाई है, जो आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई है। जानें इस फिल्म की वापसी के पीछे की कहानी और इसके सांस्कृतिक महत्व के बारे में।
 

उमराव जान की वापसी


जून की शुरुआत के साथ ही, क्लासिक सिनेमा प्रेमियों के लिए एक सुखद समाचार आया है। हिंदी सिनेमा की अमर कृतियों में से एक ‘उमराव जान’ अब एक बार फिर से सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने जा रही है।


PVR-INOX, जो देश की सबसे बड़ी मल्टीप्लेक्स श्रृंखला है, ने सोमवार को घोषणा की कि ‘उमराव जान’ (1981) को 27 जून 2025 को 4K क्वालिटी में पूरे देश के सिनेमाघरों में फिर से रिलीज किया जाएगा। इस खबर ने उन लाखों प्रशंसकों के चेहरे पर खुशी ला दी है जो रेखा को उनके सबसे प्रतिष्ठित किरदार में फिर से देखने के लिए उत्सुक हैं।


यादें जो फिर से जीवित होंगी

रेखा की आंखों की जादूगरी, उनकी अदाएं और उनकी नजाकत — ‘उमराव जान’ में सब कुछ ऐसा था जो शब्दों में नहीं कह सकते। 1840 के लखनऊ की तवायफ की भूमिका में रेखा ने जो भावनात्मक गहराई दिखाई, वह भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर हो गई। फिल्म के गाने ‘इन आंखों की मस्ती के दीवाने हजारों हैं’ और ‘दिल चीज़ क्या है, आप मेरी जान लीजिए’ में रेखा की अदाकारी एक अद्भुत कला का उदाहरण बनी।


यह वही फिल्म है जिसने रेखा को उनका पहला राष्ट्रीय पुरस्कार दिलाया और उन्हें एक सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया। आज भी ‘उमराव जान’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में देखी जाती है।


फिल्म की तकनीकी और भावनात्मक पुनरावृत्ति

44 साल बाद इसे फिर से रिलीज करने का निर्णय केवल व्यावसायिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और भावनात्मक भी है। फिल्म को 4K रिस्टोरेशन के माध्यम से नई तकनीकी चमक दी गई है, लेकिन इसकी आत्मा वही बनी हुई है — नज़ाकत, तहज़ीब और एक टूटी आत्मा की खूबसूरत दास्तान।


PVR-INOX के अनुसार, ‘उमराव जान’ को देशभर के चुनिंदा शहरों में विशेष शो के साथ प्रदर्शित किया जाएगा, ताकि दर्शक उस पुराने दौर की शाही संस्कृति का अनुभव कर सकें।


रेखा का अद्वितीय किरदार

रेखा ने इससे पहले भी तवायफ की भूमिका निभाई थी, लेकिन ‘उमराव जान’ में उन्होंने जिस ठहराव, दर्द और नज़ाकत के साथ अमीरन से उमराव बनने की यात्रा को जिया, वह भारतीय सिनेमा में अद्वितीय है।


डायरेक्टर मुजफ्फर अली ने रेखा को इस किरदार में ढालने के लिए न केवल अभिनय पर मेहनत कराई, बल्कि उन्होंने उस दौर की भाषा, बॉडी लैंग्वेज, वेशभूषा और रवैये को समझाने में भी महीनों लगाए।


कहानी जो आज भी प्रासंगिक है

फिल्म की कहानी अमीरन नाम की एक लड़की की है, जिसे बचपन में अगवा कर लखनऊ के एक कोठे पर बेच दिया जाता है। वहीं, उसकी परवरिश एक शायरा और तवायफ के रूप में होती है। उसका नाम बदलकर ‘उमराव जान’ रख दिया जाता है। वह अपने अद्भुत नृत्य, गायन और शायरी से लखनऊ की नवाबी दुनिया का दिल जीत लेती है, लेकिन उसकी आत्मा हमेशा एक खोई हुई बच्ची की तरह भटकती रहती है।


बजट की चुनौतियाँ और नवाबी मदद

फिल्म को पर्दे तक लाने में डायरेक्टर मुजफ्फर अली को काफी संघर्ष करना पड़ा। उनकी पहली फिल्म ‘गमन’ को भले सराहा गया हो, लेकिन वह बॉक्स ऑफिस पर असफल रही। ऐसे में ‘उमराव जान’ जैसी भव्य पीरियड फिल्म के लिए प्रोड्यूसर खोजना एक चुनौती था।


बजट की तंगी के चलते फिल्म लगभग बंद होने की कगार पर थी, लेकिन अवध के शाही घरानों ने मदद के लिए तिजोरियां खोल दीं। अली खुद अवध की कोटवार रियासत से ताल्लुक रखते थे और लखनऊ की नवाबी विरासत उनके खून में थी। यही वजह रही कि लखनऊ के रॉयल परिवारों ने न केवल गहने और कपड़े दिए, बल्कि अपनी ऐतिहासिक विरासत भी फिल्म को सजाने में इस्तेमाल करने दी।


रेखा की ज्वेलरी का योगदान

फिल्म के बजट को सीमित रखने के लिए रेखा ने खुद आगे बढ़कर अपनी निजी ज्वेलरी को भी शूटिंग के दौरान इस्तेमाल करने दिया। इस योगदान ने रेखा की इस फिल्म से जुड़ाव को और भी गहरा बना दिया। फिल्म का कुल बजट करीब 50 लाख रुपये था, जो उस दौर के लिए बहुत बड़ा था। बावजूद इसके, फिल्म को जिस स्तर पर पेश किया गया, उसने इसे क्लासिक का दर्जा दिला दिया।


संगीत की जादूगरी

‘उमराव जान’ का संगीत भी इस फिल्म की आत्मा है। खय्याम के संगीत निर्देशन में और आशा भोंसले की आवाज़ में जो जादू रचा गया, वो आज भी उतना ही असरदार है। ‘दिल चीज़ क्या है’, ‘इन आंखों की मस्ती’, ‘जुस्तजू जिसकी थी’, ‘ये क्या जगह है दोस्तों’ जैसे गाने आज भी क्लासिकल म्यूजिक प्रेमियों की प्लेलिस्ट में सबसे ऊपर रहते हैं।


इस फिल्म के लिए खय्याम, आशा भोंसले और आर्ट डायरेक्टर मंजूर को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।


क्या दर्शक फिर से जुड़ पाएंगे?

क्लासिक फिल्मों का दोबारा थिएटर में आना न केवल पुरानी यादों को ताजा करता है, बल्कि नई पीढ़ी को सिनेमा के शुद्ध रूप से रूबरू होने का मौका देता है। ‘उमराव जान’ की दोबारा रिलीज, न केवल रेखा के फैंस बल्कि हिंदी साहित्य, इतिहास और संगीत में रुचि रखने वालों के लिए भी एक सुनहरा मौका है।


निष्कर्ष

44 साल पहले जो फिल्म बनाई गई थी, वह अब समय और तकनीक की सीमाओं को पार कर फिर से प्रासंगिक बन रही है। ‘उमराव जान’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक संस्कृति, एक दौर, एक एहसास है। रेखा की अदाकारी, खय्याम का संगीत और मुजफ्फर अली की भव्य कल्पना — सब मिलकर एक ऐसी कृति रचते हैं जिसे दोबारा देखना केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक कला यात्रा है।


तो इस जून, जब सूरज अपना कहर बरपा रहा होगा, तब थिएटर की ठंडक में रेखा की आंखों की मस्ती एक बार फिर से दिलों को सुकून देगी।