केले की खेती में सिगाटोका रोग से बचाव के उपाय
सिगाटोका रोग से बचाव के उपाय
केले की खेती में सिगाटोका रोग का खतरा
नई दिल्ली: केले की खेती से किसानों को अच्छा लाभ होता है, लेकिन अगस्त और सितंबर के महीनों में बारिश के कारण केले के पौधों में रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है। इस दौरान सिगाटोका रोग का प्रभाव देखा जा रहा है, जो एक फफूंद जनित बीमारी है। इस रोग की पहचान और इससे बचाव करना किसानों के लिए अत्यंत आवश्यक है। इस रोग के कारण किसानों को कई बार नुकसान उठाना पड़ता है। बिहार कृषि विभाग ने इस रोग से बचाव के उपाय सुझाए हैं, जिनका पालन करके किसान अपनी फसल को सुरक्षित रख सकते हैं।
पीला सिगाटोका के लक्षण
केले के पौधों में काला सिगाटोका रोग का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इस रोग के कारण नए पत्तों पर हल्के पीले दाग या धारीदार रेखाएं दिखाई देती हैं। समय के साथ ये धब्बे बड़े और भूरे रंग के हो जाते हैं, जिनका केंद्र हल्का कत्थई होता है। इस रोग का असर फलों के उत्पादन पर गंभीर प्रभाव डालता है।
बचाव के उपाय
पीला सिगाटोका रोग से बचने के लिए प्रतिरोधी किस्म के पौधे लगाना चाहिए। खेत को खरपतवार से मुक्त रखना और रोगग्रस्त पत्तियों को हटाकर नष्ट करना आवश्यक है। यदि बारिश के कारण खेत में पानी भर गया है, तो उसकी निकासी सुनिश्चित करें। खेत में पानी का ठहराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह रोग के संक्रमण को बढ़ावा देता है। इसके अलावा, प्रति एकड़ 1 किलो ट्राईकोडर्मा विरिडे को 25 किलो गोबर खाद के साथ मिलाना चाहिए।
काला सिगाटोका के लक्षण
काला सिगाटोका रोग का प्रभाव भी बढ़ रहा है। इस रोग के कारण केले के पत्तियों के निचले भाग पर काले धब्बे और धारीदार रेखाएं बनती हैं। बारिश के दिनों में अधिक तापमान के कारण यह रोग फैलता है, जिससे केले परिपक्व होने से पहले ही पक जाते हैं, जिससे किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता।
रोग से बचाव के उपाय
काला सिगाटोका रोग से बचाव के लिए रासायनिक फफूंदनाशक कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का 1 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। इसके अलावा, खेत या पौधों के आसपास पानी जमा न होने दें। यदि पौधों के आसपास गंदगी है, तो उसे तुरंत हटा दें ताकि फफूंद न पनप सके। अनावश्यक सिंचाई से बचें।