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जम्मू कश्मीर में हिंदी का बढ़ता प्रभाव: त्रिभाषा फॉर्मूला लागू

जम्मू कश्मीर में हिंदी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है, जहां पहले उर्दू का बोलबाला था। हाल के विधानसभा सत्र में विधायकों ने हिंदी शब्दों का अधिक प्रयोग किया है। यह बदलाव पिछले छह वर्षों में हुए राजनीतिक परिवर्तनों का परिणाम है। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा के हिंदी में संवाद को प्राथमिकता देने से भी यह स्थिति बनी है। अब तीन भाषाओं में साइनबोर्ड लिखने की योजना बनाई जा रही है, जिससे भाषा के स्तर पर विभाजन कम हो रहा है।
 

हिंदी का बढ़ता उपयोग

हाल ही में, तमिलनाडु और कर्नाटक में हिंदी भाषियों के प्रति भेदभाव की खबरें सामने आई हैं, जबकि जम्मू कश्मीर से एक सकारात्मक समाचार आया है। जहां पहले उर्दू का बोलबाला था, वहीं अब हिंदी का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि सरकारी स्तर पर इसे औपचारिक रूप से लागू नहीं किया गया है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि जम्मू कश्मीर में त्रिभाषा फॉर्मूला व्यावहारिक रूप से कार्यान्वित हो चुका है। लोग अब रोजमर्रा की जिंदगी में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी का उपयोग कर रहे हैं, और सरकारी कार्यों में भी हिंदी का चलन बढ़ा है।


विधानसभा में हिंदी का प्रयोग

पिछले हफ्ते समाप्त हुए विधानसभा सत्र की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के विधायकों ने हिंदी के कई शब्दों का उपयोग किया। सदन की कार्यवाही में हिंदुस्तानी भाषा का सही अर्थ में प्रयोग हुआ। हालांकि उर्दू की प्रधानता अभी भी बनी हुई है, लेकिन हिंदी शब्दों का प्रयोग बढ़ता जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू कश्मीर में विधायी कार्यों में हिंदी शब्दों का चलन बढ़ा है, जैसे कि ‘आपत्ति’, ‘आवश्यक’, ‘दुर्घटना’, ‘कृपया’, और ‘महोदय’ जैसे शब्दों का उपयोग किया गया।


भाषाई बदलाव के कारण

जम्मू कश्मीर में पिछले छह वर्षों में हुए परिवर्तनों के कारण हिंदी का उपयोग बढ़ा है। केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद, राज्य का विशेष दर्जा खत्म हुआ। उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ने हिंदी में संवाद को प्राथमिकता दी है, और यह भी देखा गया है कि परिसीमन के बाद हिंदी बोलने वालों का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। भाजपा के विधायक विशेष रूप से हिंदी का उपयोग करते हैं। इसके अलावा, केंद्र सरकार और संसद में हिंदी में कामकाज होने के कारण राज्यों में भी हिंदी का चलन बढ़ रहा है।


भविष्य की संभावनाएं

भाषाई स्तर पर जम्मू कश्मीर में विभाजन कम होता दिख रहा है। बताया जा रहा है कि अब तीन भाषाओं में साइनबोर्ड लिखने की योजना बनाई जा रही है, और कुछ स्थानों पर इसे लागू भी किया जा चुका है।