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जुबीन गर्ग की अंतिम विदाई: असम ने खोया एक संगीत सम्राट

जुबीन गर्ग की अचानक मृत्यु ने असम को गहरे शोक में डाल दिया है। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए, जिन्होंने उन्हें श्रद्धांजलि दी। गुवाहाटी में उनके पार्थिव शरीर के अंतिम यात्रा के दौरान, शहर की गतिविधियाँ थम गईं। जुबीन गर्ग ने अपने करियर में 40 भाषाओं में हजारों गाने गाए और असम की संस्कृति को देश-विदेश में फैलाया। जानें उनके जीवन और संगीत के बारे में इस लेख में।
 

जुबीन गर्ग का संगीत सफर

जब 2006 में जुबीन गर्ग का गाना 'या अली' लोगों के बीच आया, तो यह सिर्फ एक गाना नहीं रहा, बल्कि यह एक पीढ़ी की पहचान बन गया। कॉलेज की कैंटीनों से लेकर होस्टल की रातों तक, इस गाने ने युवाओं को एकजुट किया और जुबीन की आवाज हर दिल में बस गई। अब, लगभग दो दशक बाद, उनकी अचानक मृत्यु ने न केवल असम बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया है।


गुवाहाटी में अंतिम यात्रा

जुबीन गर्ग के पार्थिव शरीर के गुवाहाटी पहुंचने पर शहर की गतिविधियाँ थम गईं। एयरपोर्ट से उनके निवास तक 25 किलोमीटर की यात्रा में हजारों लोग सड़क किनारे खड़े होकर उन्हें अंतिम विदाई दे रहे थे। फूलों से सजी एम्बुलेंस जब धीरे-धीरे शहर से गुजरी, तो लोगों की भीड़ इतनी अधिक थी कि यात्रा में पांच घंटे से ज्यादा का समय लग गया। बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं और युवा सभी आंसुओं में डूबे जुबीन दा को अंतिम प्रणाम कर रहे थे।


गुवाहाटी का 'ब्लैक डे'

जुबीन की मृत्यु के बाद गुवाहाटी में सब कुछ ठहर गया। दुकानों और रेस्तरां को बंद कर दिया गया। फैंस संगठनों ने जगह-जगह दुकानों को बंद करवाया, जिससे कई छोटे दुकानदार और दैनिक मजदूरी पर निर्भर लोग प्रभावित हुए। लेकिन आम जनता की भावनाएं इतनी प्रबल थीं कि हर कोई अपने तरीके से जुबीन दा को श्रद्धांजलि देना चाहता था।


परिवार का दुख

सिंगापुर से उनका पार्थिव शरीर दिल्ली होते हुए गुवाहाटी लाया गया। दिल्ली एयरपोर्ट पर मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा और कई मंत्री मौजूद थे। गुवाहाटी में जैसे ही शव पहुंचा, उनकी पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग अपने आंसू नहीं रोक सकीं। उन्होंने गमछा ओढ़ाकर अंतिम बार पति को गले लगाया। सड़क किनारे खड़े लोग 'जय जुबीन दा' के नारे लगाते हुए उन्हें विदाई दे रहे थे।


संगीत का दूत

तीन दशकों के करियर में जुबीन गर्ग ने 40 भाषाओं में लगभग 38,000 गाने गाए। उनकी आवाज असम की पहचान बन गई, जिसने राज्य की संस्कृति को देश और विदेश में फैलाया। लोग कहते हैं कि वे केवल गायक नहीं थे, बल्कि असम की आत्मा थे। उनके गाने पीढ़ियों को जोड़ते रहे हैं।


जुबीन दा की अमर यादें

गुवाहाटी की सड़कों पर लोग मोमबत्तियां जलाकर, गमछा लहराकर और उनका पसंदीदा गीत 'मायाबिनी' गाकर उन्हें याद कर रहे थे। यह वही गीत था जिसे जुबीन दा ने कहा था कि उनकी मृत्यु के बाद बजाया जाए। असम सरकार उनके अंतिम संस्कार और स्मारक की जगह तय कर रही है।