धर्मेंद्र: हिंदी सिनेमा का अमिट सितारा, संघर्ष से सफलता की कहानी
धर्मेंद्र की अद्वितीय छवि
मुंबई : धर्मेंद्र की पहचान हिंदी सिनेमा में हमेशा से एक अलग रही है। उनकी मजबूत कद-काठी, देसी अंदाज, और मुस्कान के पीछे एक संवेदनशील दिल छिपा है। उनका गाना “मैं जट यमला पगला दीवाना” केवल एक गीत नहीं, बल्कि उनकी पूरी शख्सियत का परिचायक है। उन्होंने कभी भी स्टारडम को अपने सिर पर चढ़ने नहीं दिया और न ही किसी सम्मान या सुपरस्टार की प्रतिस्पर्धा से खुद को जोड़ा। उनकी सहजता और बिंदास मिजाज ने उन्हें दर्शकों का प्रिय बना दिया।
विनोद खन्ना और मिथुन के साथ संबंध
विनोद खन्ना और मिथुन से आत्मीय रिश्ता
धर्मेंद्र ने हमेशा अपने से छोटे कलाकारों को प्रोत्साहित किया। विनोद खन्ना की बीमारी और निधन ने उन्हें गहरे दुख में डाल दिया। मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने पर उन्होंने सबसे पहले उन्हें बधाई दी। अपने दौर के सुपरस्टार होने के बावजूद, धर्मेंद्र ने कभी प्रतिस्पर्धा नहीं की। राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के उभरते सितारे बनने से उनका आत्मविश्वास कभी नहीं डिगा। लुधियाना के देओल परिवार से आने वाले इस जाट सिख कलाकार ने अपनी अनोखी शैली में पहचान बनाई।
पहली फिल्म का सफर
पहली फिल्म के लिए मिले सिर्फ 51 रुपये
धर्मेंद्र ने 1960 में फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट जीतकर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा। उनकी पहली फिल्म 'दिल भी तेरा, हम भी तेरे' के लिए उन्हें मात्र 51 रुपये मिले। यह रकम भले ही छोटी थी, लेकिन यही उनकी यात्रा की शुरुआत बनी। फिल्म असफल रही, लेकिन उन्होंने संघर्ष जारी रखा। बाहरी कलाकार होते हुए भी उन्होंने हार नहीं मानी और महानगर में अपनी जगह बनाई।
मनोज कुमार का समर्थन
मनोबल टूटता गया, पर मनोज कुमार ने थामा हाथ
धर्मेंद्र निराश होकर पंजाब लौटने का सोच रहे थे, तभी उनके करीबी दोस्त मनोज कुमार ने उन्हें संभाला। दोनों उस समय संघर्ष कर रहे थे, लेकिन मनोज ने कहा कि अगर वे दो रोटियां कमाएंगे, तो आधी-आधी बांटकर खाएंगे। यही शब्द धर्मेंद्र के लिए प्रेरणा बने। मनोज कुमार के निधन पर धर्मेंद्र की खामोशी उनकी गहरी दोस्ती को दर्शाती है।
सफलता की ओर कदम
संघर्ष से सफलता तक की छलांग
1963 में आई फिल्म 'बंदिनी' ने धर्मेंद्र के करियर को नया मोड़ दिया। बिमल रॉय के निर्देशन में काम करने का यह अवसर उनके लिए अमूल्य साबित हुआ। इस फिल्म से उन्हें पहली बार उचित पारिश्रमिक मिला, जिससे उन्होंने अपनी पहली कार खरीदी। उन्होंने सोचा कि अगर फिल्मों में काम नहीं मिला, तो टैक्सी चलाकर गुज़ारा करेंगे। लेकिन किस्मत ने उनका साथ दिया और 'बंदिनी' और 'मिलन की बेला' जैसी फिल्मों ने उन्हें मजबूत स्थान दिलाया।
मीना कुमारी के साथ जोड़ी
मीना कुमारी के साथ पर्दे पर निखरती केमिस्ट्री
मीना कुमारी को हमेशा एक ऐसे कलाकार के रूप में देखा गया है, जिनके सामने किसी भी नायक का प्रभाव कम हो जाता है। लेकिन धर्मेंद्र के साथ उनकी जोड़ी सबसे सफल रही। 'काजल', 'पूर्णिमा', 'फूल और पत्थर', 'मझली दीदी' और 'चंदन का पालना' जैसी फिल्मों में दोनों ने बेहतरीन काम किया। इन फिल्मों के दौरान उनके आपसी समीकरण की भी चर्चा रही।
हेमा मालिनी के साथ जोड़ी
पर्दे की हिट जोड़ी से जीवन साथी तक
सत्तर के दशक में हेमा मालिनी की एंट्री ने हिंदी सिनेमा में नया अध्याय खोला। उनकी खूबसूरती और अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसी दौरान धर्मेंद्र और हेमा की जोड़ी ने कई हिट फिल्में दीं, जैसे 'तुम हसीन मैं जवान', 'शराफत', 'सीता और गीता', 'शोले', 'ड्रीम गर्ल' और 'आस पास'। हेमा की चमक के बीच धर्मेंद्र की उपस्थिति हमेशा ऊर्जा और भावनात्मक गहराई लेकर आती थी।
धर्मेंद्र की निरंतर लोकप्रियता
राजेश, अमिताभ के दौर में धर्मेंद्र की लोकप्रियता
जब राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम अपने चरम पर था और अमिताभ बच्चन का एंग्री यंग मैन अवतार दर्शकों को आकर्षित कर रहा था, तब भी धर्मेंद्र ने अपनी पहचान बनाए रखी। फिल्म 'शोले' में पानी की टंकी वाला उनका दृश्य आज भी क्लासिक माना जाता है। उनकी कॉमिक टाइमिंग ने दर्शकों को हंसाया। ऐसा कोई समय नहीं था जब धर्मेंद्र की लोकप्रियता कम हुई हो।
धर्मेंद्र का नया सफर
‘अपने’ से लेकर ‘रॉकी और रानी…’ तक
2007 में 'अपने' के साथ धर्मेंद्र ने फिर से पर्दे पर वापसी की। सनी और बॉबी के साथ भी उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। हालिया फिल्मों जैसे 'रॉकी और रानी की प्रेम कहानी' और 'तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया' में उनकी उपस्थिति ने दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ा। अब उनकी आगामी फिल्म 'इक्कीस' से दर्शकों को उनकी पुरानी चमक देखने की उम्मीद है।