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बिहार में प्रिंसिपल की नियुक्ति लॉटरी से, शिक्षा व्यवस्था पर सवाल

बिहार में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति चिंताजनक हो गई है, जहां प्रिंसिपलों की नियुक्ति लॉटरी के माध्यम से की जा रही है। यह कदम प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है। क्या योग्य व्यक्तियों का चयन इस तरह किया जाना चाहिए? जानें इस मुद्दे पर विस्तृत जानकारी और इसके पीछे की सच्चाई।
 

बिहार की शिक्षा व्यवस्था में अव्यवस्था

बिहार में सरकार की स्थिति भगवान भरोसे चल रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ विपक्षी नेता लगातार यह आरोप लगा रहे हैं कि वे बेहोशी की हालत में हैं और अपनी सरकार के मंत्रियों के नाम भी भूल चुके हैं। इस कारण राज्य में सभी मंत्री और अधिकारी मनमानी कर रहे हैं। इसका एक उदाहरण पटना यूनिवर्सिटी के कॉलेजों में प्रिंसिपलों की नियुक्ति में देखने को मिलता है।


पटना यूनिवर्सिटी, जो एक सौ साल पुराना है और जिसका अध्यापन का गौरवशाली इतिहास रहा है, अब प्रिंसिपल की नियुक्ति के लिए लॉटरी का सहारा ले रही है। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है।


एक रिपोर्ट के अनुसार, छपरा के जयप्रकाश यूनिवर्सिटी के इतिहास के प्रोफेसर नागेंद्र प्रसाद वर्मा को मगध महिला कॉलेज पटना का प्रिंसिपल लॉटरी से नियुक्त किया गया है। पटना यूनिवर्सिटी के दो प्रमुख कॉलेजों, पटना कॉलेज और पटना साइंस कॉलेज में भी इसी तरह से प्रिंसिपल नियुक्त हुए हैं।


पटना कॉलेज के लिए उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में केमिस्ट्री पढ़ाने वाले अनिल कुमार का नाम लॉटरी में निकला, जबकि पटना साइंस कॉलेज के लिए हाजीपुर महिला कॉलेज की प्रोफेसर अलका यादव का नाम आया। इसी तरह, मगध महिला कॉलेज में होम साइंस की प्रोफेसर सुहेली मेहता का नाम वाणिज्य महाविद्यालय के लिए लॉटरी से निकला।


पटना लॉ कॉलेज के प्रोफेसर योगेंद्र कुमार वर्मा की लॉटरी निकली और वे उसी संस्थान के प्रिंसिपल बन गए। भले ही ये प्रिंसिपल योग्य हों, लेकिन लॉटरी से नाम तय होना यह दर्शाता है कि प्रशासन कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा है। क्या इसी तरह प्रशासनिक अधिकारियों का चयन भी लॉटरी से किया जा सकता है? क्या पटना का कलेक्टर चुनने के लिए 10 आईएएस अधिकारियों में से किसी का नाम लॉटरी से निकाला जा सकता है? फिर शिक्षा के साथ इस तरह का मजाक क्यों किया जा रहा है?