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बिहार में शराबबंदी: माफियाओं का बढ़ता प्रभाव और चुनावों पर असर

बिहार में शराबबंदी अब केवल एक दिखावा बन गई है, जहां माफियाओं का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। नेताओं और पुलिस के संरक्षण में ये माफिया अवैध शराब का कारोबार कर रहे हैं, जिससे राज्य को भारी राजस्व का नुकसान हो रहा है। हाल ही में प्रशांत किशोर ने कहा कि शराब की दुकानें बंद हैं, लेकिन होम डिलिवरी जारी है। चुनावों के दौरान अवैध शराब की खपत बढ़ने की संभावना है, जो निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित कर सकती है। जानें इस मुद्दे की पूरी कहानी।
 

शराबबंदी का औपचारिकता बनना

पटना। बिहार में शराबबंदी अब केवल एक दिखावा बनकर रह गई है। शराब माफिया इस स्थिति का लाभ उठाकर फल-फूल रहे हैं, और उन्हें नेताओं, अधिकारियों और पुलिस का संरक्षण प्राप्त है। इस कारण वे अपने अवैध धंधे को बेखौफ तरीके से चला रहे हैं। कभी-कभी पुलिस छोटे माफियाओं को पकड़कर अपनी पीठ थपथपाती है, लेकिन असली माफिया सत्ता और पुलिस के संरक्षण में काम कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, आगामी विधानसभा चुनाव में इन माफियाओं का कारोबार और भी बढ़ने की संभावना है।


शराब की बिक्री और होम डिलिवरी

मनमाने दामों पर शराब बेचना
बिहार में शराबबंदी के बाद माफियाओं की स्थिति मजबूत हो गई है। 2016 के बाद से कई बड़े माफिया उभरे हैं, जिन्हें सत्ता और प्रशासन का समर्थन मिला है। इनकी गतिविधियों के कारण बिहार के हर कोने में होम डिलिवरी की सेवाएं उपलब्ध हैं। विपक्षी दल इस मुद्दे को उठाते रहे हैं, यह कहते हुए कि शराबबंदी केवल दिखावा है और इससे राज्य के राजस्व को नुकसान हो रहा है।


पुलिस की कार्रवाई और बड़े माफियाओं का संरक्षण

छोटे माफियाओं पर कार्रवाई
बिहार में अवैध शराब की सप्लाई करने वालों के खिलाफ अक्सर कार्रवाई की जाती है, लेकिन यह केवल छोटे माफियाओं पर होती है। बड़े माफियाओं को संरक्षण मिलने के कारण उनका नेटवर्क पूरे राज्य में फैला हुआ है। ये माफिया चाहते हैं कि शराबबंदी बनी रहे ताकि उनकी कमाई बढ़ती रहे।


शराब की होम डिलिवरी और आर्थिक नुकसान

शराब की दुकानें बंद, लेकिन डिलिवरी जारी
हाल ही में प्रशांत किशोर ने एक इंटरव्यू में कहा कि बिहार में केवल शराब की दुकानें बंद हैं, लेकिन शराब की होम डिलिवरी जारी है। 100 रुपये की शराब 300 रुपये में बेची जा रही है, जिससे राज्य और जनता को सालाना 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। यह पैसा भ्रष्ट नेताओं और माफियाओं के पास जा रहा है।


पड़ोसी राज्यों से अवैध सप्लाई

शराब की तस्करी
बिहार में शराबबंदी के बाद अवैध शराब की तस्करी बढ़ गई है। पड़ोसी राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल से शराब की तस्करी होती है। तस्कर शराब को छिपाने के लिए अनोखे तरीके अपनाते हैं, जैसे तेल के टैंकर और दूध के डिब्बे का उपयोग। FICCI की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में अवैध शराब का कारोबार 23,466 करोड़ रुपये का है, जिसमें बिहार का बड़ा हिस्सा है।


जहरीली शराब से होने वाली त्रासदी

जहरीली शराब की समस्या
बिहार में शराबबंदी के कारण जहरीली शराब से कई लोगों की जान जा रही है। अवैध शराब पीने से होने वाली मौतें अक्सर सुर्खियों में रहती हैं। विपक्षी दल इस मुद्दे को उठाते हैं, लेकिन अवैध तस्करी अब भी जारी है।


राजस्व में भारी कमी

राजस्व का नुकसान
बिहार में 1 अप्रैल 2016 को शराबबंदी लागू की गई थी, जिसके बाद से राज्य को लगातार राजस्व का नुकसान हो रहा है। अनुमानित 35,000-40,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, जिससे राज्य के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।


FIRs की संख्या में वृद्धि

लाखों FIR दर्ज
शराबबंदी के बाद से लाखों FIR दर्ज की गई हैं और बड़ी संख्या में लोग जेल गए हैं। पुलिस और आबकारी विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, जिससे कानून की साख को नुकसान हुआ है।


चुनावों में अवैध शराब का उपयोग

चुनावों में शराब की खपत
सूत्रों के अनुसार, चुनावों के दौरान अवैध शराब की तस्करी बढ़ जाती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि आगामी विधानसभा चुनाव में बड़ी मात्रा में अवैध शराब की सप्लाई की जाएगी, जो नेताओं और अधिकारियों के इशारों पर होगी। इससे निष्पक्ष चुनाव पर असर पड़ेगा।