रणवीर सिंह की फिल्म धुरंधर: बलूचिस्तान की सांस्कृतिक धरोहर का जश्न
धुरंधर: बलूचिस्तान की कहानी
रणवीर सिंह की नई फिल्म 'धुरंधर' ने अपनी रिलीज के साथ ही बलूचिस्तान को फिर से चर्चा का विषय बना दिया है। यह फिल्म कराची के ल्यारी क्षेत्र की पृष्ठभूमि पर आधारित है, जो बलूच समुदाय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। इसमें बलूच गैंगस्टरों की दुनिया को दर्शाया गया है, लेकिन यह फिल्म बॉलीवुड को दिए गए कई दिग्गज कलाकारों को भी याद दिलाती है। 'धुरंधर' बलूचिस्तान को एक श्रद्धांजलि के रूप में प्रस्तुत करती है।
कहानी और बलूच कनेक्शन
'धुरंधर' एक स्पाई थ्रिलर है, जिसमें रणवीर सिंह एक भारतीय जासूस की भूमिका निभा रहे हैं। यह कहानी गैंग वॉर के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें अक्षय खन्ना बलूच गैंग के लीडर रहमान डकैत का किरदार निभाते हैं। फिल्म बलूच संस्कृति, उनकी बहादुरी और संघर्ष को उजागर करती है।
फिल्म का गाना 'शेर-ए-बलोच' बलूच गौरव का प्रतीक बन गया है, जो बलूचिस्तान की विरासत को बड़े पर्दे पर जीवंत करता है और दर्शकों को उस क्षेत्र की याद दिलाता है, जिसने हिंदी सिनेमा को अनमोल रत्न दिए हैं।
सुरेश ओबेरॉय: एक प्रतिष्ठित चेहरा
सुरेश ओबेरॉय, जो 1946 में क्वेटा में जन्मे थे, विभाजन के बाद भारत आए। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत रेडियो और मॉडलिंग से की। 135 से अधिक फिल्मों में उन्होंने पुलिस अधिकारी, पिता और नैतिक चरित्र निभाए हैं। उनकी भूमिकाएं, जैसे 'मिर्च मसाला', 'तेजाब' और 'गदर', आज भी याद की जाती हैं। वे कई भाषाएं बोलते थे, जो उनकी जड़ों से जुड़ी हुई थीं। सुरेश विवेक ओबेरॉय के पिता भी हैं।
कादर खान: संवादों के जादूगर
कादर खान की जड़ें बलूचिस्तान के पिशिन से थीं। मुंबई आकर उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और प्रोफेसर बने। उन्होंने 300 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया और 250 फिल्मों के संवाद लिखे। 'अमर अकबर एंथोनी' और 'अग्निपथ' जैसी फिल्मों के संवाद आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं। उन्हें कई पुरस्कार और पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
अमजद खान: गब्बर का खौफ
1940 में क्वेटा में जन्मे अमजद खान शोले के गब्बर सिंह के रूप में अमर हो गए। उन्होंने 130 से अधिक फिल्मों में खलनायकी को एक नया आयाम दिया। उनकी आवाज और अदाकारी ने विलेन को जटिलता प्रदान की।
राज कुमार: नाटकीय अंदाज
राज कुमार, जो 1926 में लोरालाई में जन्मे थे, पहले पुलिस अधिकारी थे। 'मदर इंडिया', 'पाकीजा' और 'सौदागर' जैसी फिल्मों में उनकी गहरी आवाज और ठहराव वाले संवाद आज भी याद किए जाते हैं।
अन्य योगदान
वीना कुमारी 1940-50 के दशक की प्रमुख अभिनेत्री थीं। ज़ेबा बख्तियार ने 'हेन्ना' से भारतीय दर्शकों का दिल जीता। मेहुल कुमार ने 'क्रांतिवीर' जैसी फिल्में निर्देशित कीं। ये सभी कलाकार यह दर्शाते हैं कि बलूचिस्तान ने बॉलीवुड को कितना कुछ दिया है। 'धुरंधर' इन यादों को ताजा कर उस क्षेत्र को सम्मान देती है।