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रविवार को सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का विशेष संयोग

इस रविवार को सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का विशेष संयोग बन रहा है। जानें इस दिन के महत्व, व्रत के लाभ और विशेष उपाय जो आपको सफलता दिला सकते हैं। ज्योतिष के अनुसार, इस दिन किए गए कार्यों में सफलता की संभावना अधिक होती है। जानें कैसे इस दिन को विशेष बनाएं और सूर्य देव की कृपा प्राप्त करें।
 

रविवार का महत्व और ज्योतिषीय संयोग

नई दिल्ली: आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि रविवार को है। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग का अद्भुत संयोग बन रहा है। सूर्य इस दिन कन्या राशि में और चंद्रमा 29 सितंबर को सुबह 3:55 बजे तक वृश्चिक राशि में रहेंगे, इसके बाद वे धनु राशि में प्रवेश करेंगे।


द्रिक पंचांग के अनुसार, अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:48 बजे से 12:35 बजे तक रहेगा, जबकि राहुकाल का समय सुबह 4:41 बजे से दोपहर 6:10 बजे तक होगा।


सर्वार्थ सिद्धि ज्योतिष में एक अत्यंत शुभ योग है, जो किसी विशेष दिन एक विशिष्ट नक्षत्र के मेल से बनता है। इस योग में किए गए कार्यों को सफलता प्राप्त होती है। इसका मुहूर्त 29 सितंबर की सुबह 3:55 बजे से 6:13 बजे तक रहेगा।


रवि योग भी ज्योतिष में एक शुभ योग माना जाता है। यह तब बनता है जब चंद्रमा का नक्षत्र सूर्य के नक्षत्र से चौथे, छठे, नौवें, दसवें और तेरहवें स्थान पर होता है। इस दिन निवेश, यात्रा, शिक्षा या व्यवसाय से संबंधित कार्यों की शुरुआत करना लाभकारी माना जाता है।


अग्नि और स्कंद पुराणों के अनुसार, रविवार को व्रत रखने से सुख, समृद्धि, स्वास्थ्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह व्रत विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जिनकी कुंडली में सूर्य कमजोर है।


व्रत शुरू करने के लिए ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें, मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें, फिर एक चौकी पर कपड़ा बिछाकर पूजन सामग्री रखें। इसके बाद व्रत कथा सुनें और सूर्य देव को तांबे के बर्तन में जल, फूल, अक्षत और रोली डालकर अर्घ्य दें। ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।


रविवार को आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने और सूर्य देव के मंत्र "ऊँ सूर्याय नमः" या "ऊँ घृणि सूर्याय नमः" का जप करने से भी विशेष लाभ मिलता है। गुड़ और तांबे का दान भी इस दिन महत्वपूर्ण है। इन उपायों से सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता मिलती है।


एक समय भोजन करें, जिसमें नमक का सेवन न करें और व्रत का उद्यापन 12 व्रतों के बाद किया जाता है।