राकेश रोशन: संघर्ष से सफलता की कहानी
राकेश रोशन का सफर
बॉलीवुड में कई बार किस्मत का खेल देखने को मिलता है, और ऐसे में कुछ सितारे भी होते हैं जो अंधेरे दौर से गुजरते हैं। राकेश रोशन का सफर भी कुछ ऐसा ही रहा है। एक समय था जब उन्हें इंडस्ट्री में 'श्रापित' माना जाता था। उनके अभिनय करियर में लगातार असफलताएं आईं, जिससे वे निराश हो गए थे। उन्होंने भगवान से भी सवाल किया कि उनकी गलती क्या है।संघर्ष का दौर: जब सब कुछ दांव पर था। यह कहानी 1970 और 80 के दशक की है, जब राकेश रोशन ने 94 फिल्मों में काम किया, लेकिन उनमें से कई में उन्हें सहायक भूमिकाएं मिलीं। इस दौरान उनके पास आर्थिक तंगी भी थी, जिससे परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा था। उन्होंने अपने घर, कार और ऑफिस को गिरवी रखकर अपने निर्देशन करियर की शुरुआत की। 'खुदगर्ज' फिल्म से उन्होंने निर्देशन में कदम रखा, जो एक बड़ी हिट साबित हुई।
जब 'श्रापित' का तमगा 'किंग' बन गया। निराशा के बावजूद, राकेश रोशन ने हार नहीं मानी। उन्होंने निर्देशन में कदम रखा और 1987 में 'खुदगर्ज' से सफलता पाई। इसके बाद उन्होंने 'खून भरी मांग', 'किशन कन्हैया', 'किंग अंकल', और 'करण अर्जुन' जैसी सफल फिल्में बनाई।
'कहो ना... प्यार है' और 'क्रिश' का जादू। राकेश रोशन का सबसे बड़ा कमाल तब देखने को मिला जब 2000 में उन्होंने अपने बेटे ऋतिक रोशन को 'कहो ना... प्यार है' से लॉन्च किया। यह फिल्म एक ब्लॉकबस्टर साबित हुई और ऋतिक रातोंरात सुपरस्टार बन गए। इसके बाद पिता-पुत्र की जोड़ी ने 'कोई... मिल गया' और 'क्रिश' सीरीज जैसी सफल फिल्में दीं।
राकेश रोशन का यह सफर हमें सिखाता है कि असफलताएं अंत नहीं होतीं, बल्कि वे नई शुरुआत का रास्ता दिखा सकती हैं। उन्होंने साबित किया कि मेहनत और सही दिशा से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।