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खेती पर दिखने लगा है तापमान बढ़ोतरी का असर

 




डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

जलवायु परिवर्तन का असर खेती किसानी पर साफ दिखाई देने लगा है। कहा जा रहा था कि 2024 की फरवरी सर्वाधिक गर्मी वाला माह रहा है पर 2025 में जनवरी में जिस तरह तापमान में बढ़ोतरी देखी गई है और फरवरी में ही देश के अधिकांश हिस्सों खासकर उत्तरी भारत में तापमान में लगातार तेजी देखी जा रही है वह चिंतनीय है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान सहित अनेक प्रदेशों में फरवरी में अधिकतम तापमान का आंकड़ा 30 डिग्री को छूने की तरफ अग्रसर है। देश के कई हिस्सों में दिन का तापमान 29 डिग्री को पार कर रहा है। यह कोई हमारे देश के ही हालात नहीं हैं अपितु दुनिया के अधिकांश देशों में जलवायु परिवर्तन का असर साफ-साफ दिखाई देने लगा है। बढ़ता तापमान बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। बढ़ते तापमान के कारण परिस्थिति तंत्र प्रभावित हो रहा है। बीमारियां तो फैल ही रही हैं, संपूर्ण तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। चिंता की बात यह है कि एक ओर हम निरंतर घटते भूजल स्तर से प्रभावित हो रहे हैं तो ग्लेसियरों के तेजी से पिघलने का असर दिखाई दे रहा है। असमय अतिवृष्टि, अनावृष्टि, तूफान, जंगलों में आग आदि के रूप में इसका सीधा असर दिखाई दे रहा है।

जहां तक खेती-किसानी का प्रश्न है मौसम के अप्रत्याशित बदलाव से फसल चक्र पर नकारात्मक असर दिखने लगा है। फसल वपन का एक सिस्टम होता है। बुवाई से लेकर फसल के पक कर तैयार होने का चक्र होता है। दरअसल हो यह रहा है कि जिस समय फसल में फल-फूल आने का समय होता है उस समय तापमान बढ़ने से फल-फूल का विकास रुक जाता है और फसल पकने लगती है, इससे फसल में खराबी और उत्पादन में कमी स्वाभाविक है। दिसंबर, जनवरी की सर्दी और फरवरी में औसत तापमान से फसलों का सही ढंग से विकास संभव हो पाता है। एक अन्य चिंतनीय कारण यह भी बनता जा रहा है कि मावठ के समय मावठ नहीं होती, सर्दियों की बरसात के समय बरसात नहीं होती और जिस समय तापमान में बढ़ोतरी होनी चाहिए उस समय आंधी, तूफान और बरसात आकर फसल को चौपट करने में कोई कमी नहीं छोड़ती। इसका सीधा असर खाद्यान्न संकट के रुप में देखा जा सकता है। प्रायः देखा जाने लगा है कि जब फसल की कटाई का समय होता है उस समय आंधी-तूफान या ओला-बरसात होकर फसल को चौपट करने में कमी नहीं छोड़ती। इसी तरह से जनवरी-फरवरी में जब तापमान में गिरावट की आवश्यकता होती है उस समय तापमान में बढ़ोतरी चिंता का विषय बनता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जलवायु परिवर्तन के हालात यही रहे तो कुछ खाद्य वस्तुओं के भावों में कई गुणा तक बढ़ोतरी देखने को मिलेगी। आलू, टमाटर, दालों, तिलहनों और अनाज के भावों में बढ़ोतरी साफ तौर से देखी जा सकती है।

कृषि और आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों को मानना है कि तापमान की असामयिक उतार-चढ़ाव के चलते कृषि पैदावार पर सीधा नकारात्मक असर पड़ रहा है। कृषि उत्पादन प्रभावित हो रहा है। कृषि उत्पादों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। इससे साफ हो जाता है कि खाद्य वस्तुओं के भाव बढ़ेंगे ही और उसका सीधा असर हमें महंगाई के रूप में देखने को मिलेगा। मजे की बात यह है कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के देशों में तेजी से बंजर होती भूमि को लेकर चिंता तो जताई जा रही है पर अभी तक इन हालातों से निपटने का ठोस आधार तैयार नहीं किया जा सका है। आज दुनिया के देश आसन्न खाद्यान्न संकट को लेकर चिंतित है। इसके लिए बड़े सम्मेलनों में चिंतन मनन हो रहा है। विश्व खाद्य संगठन सहित दुनिया की संस्थाएं इससे आसन्न संकट को लेकर तो परेशान है ही उनकी चिंता का कारण यह भी होता जा रहा है कि पौष्टिक भोजन नहीं मिलने से करोड़ों लोग कुपोषण के शिकार हैं। खाद्यान्नों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। दुनिया के देश खेती किसानी के महत्व को कोरोना काल में अच्छी तरह से समझ चुके हैं। कोरोना में मानवता को संबल देने में खेती किसानी ने प्रमुख भूमिका निभाई और सबकुछ बंद होने पर खेती किसानी ही लोगों का पेट भरने में सहायक रही।

जलवायु परिवर्तन का असर जब साफ साफ सामने आने लगा है तो उस हालात में मौसम विज्ञानियों और कृषि विज्ञानियों के सामने बड़ी चुनौती आ गई है। एक और जलवायु परिवर्तन को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कारकों का कोई ना कोई विकल्प खोजना ही होगा। होता यह है कि हम जिसे आज बेहतर विकल्प बताते हैं कुछ समय बाद ही उसमें भी खामियां नजर आने लगती है। जलवायु को नियंत्रित करने वाले जंगलों का स्थान कंक्रीट के जंगल लेते जा रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों व नई-नई खोजों ने हमारा जीवन आसान बनाया है पर उसके साइड इफेक्ट तेजी से असर दिखाने लगे हैं। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग ने भूमि की उर्वरा शक्ति को प्रभावित किया है। अत्यधिक जल दोहन से भूजल का स्तर साल दर साल नीचे जाता जा रहा है। भूक्षरण होने लगा है। भूमि तेजी से बंजर होती जा रही है।

खैर हालात हमारे सामने हैं। ऐसे कृषि विज्ञानियों को ऐसी किस्में विकसित करनी होगी जो बदलते मौसम के अनुकूल हो। शुष्क भूमि में खेती की किस्में खोजनी होगी। इसी तरह से कम जल में विकसित होने वाली फसलों की किस्मों पर ध्यान देना होगा। कंजरवेशन खेती को बढ़ावा देना होगा। परंपरागत खेती को चरणबद्ध तरीके से अपनाना होगा। प्रयास यह करना होगा कि जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहे मौसक चक्र के बदलाव के अनुकूल फसलों की किस्में तैयार हो। क्योंकि प्रकृति से छेड़छाड़ करने में हमने कोई कमी नहीं छोड़ी और उसका खामियाजा हमें आज भुगतना पड़ रहा है। तेज सर्दी के समय गर्मी से दो-चार होना पड़ रहा है। इस सबके साथ धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करने के उपायों पर ध्यान देना होगा। हालात गंभीर चिंतनीय होते जा रहे हैं और यही हालात रहे तो विशेषज्ञ कहने लगे हैं कि कृषि उत्पादन में कमी का असर सारी दुनिया को भुगतना होगा। हालात और भी गंभीर हो उससे पहले ठोस प्रयास करने होंगे। बदलते हालात में खेती किसानी के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे नहीं तो महंगाई तो है ही, दुनिया के कई देशों में भुखमरी के गंभीर हालात होने से कोई नहीं रोक सकेगा।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव पाश