रिश्वत का ट्रम्प कार्ड!
-कौशल मूंदड़ा
अमरीका ने मान लिया है कि रिश्वत व्यवसाय के लिए जरूरी है। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीकी कंपनियों को साफ-साफ संकेत दिया है, रिश्वत दे दो - ठेके ले लो, अमरीका में उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। हाल ही में ट्रंप प्रशासन ने जिस विदेशी भ्रष्ट आचरण अधिनियम (एफसीपीए) पर रोक लगाई है, वह अमेरिका से जुड़ी फर्मों और लोगों को विदेश में अपने व्यापार को सुरक्षित करने के लिए विदेशी अधिकारियों को पैसे या उपहार या किसी भी तरह की रिश्वत देने से प्रतिबंधित करता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने करीब 50 साल पुराने इस कानून को निलंबित कर दिया है। इस कानून पर रोक लग जाने के बाद अमरीकियों के लिए विदेशों में व्यापार के लिए रिश्वत देना अपराध नहीं रहेगा। ट्रम्प ने अटॉर्नी जनरल पाम बॉन्डी को इस कानून के तहत दिए गए फैसलों की समीक्षा करने के लिए गाइडलाइन्स बनाने के निर्देश दिए हैं।
ट्रंप का कहना है कि यह कानून अमरिकी कंपनियों के लिए ‘एक आपदा’ है। ट्रंप का कहना है कि जब अन्य देशों की कंपनियां आसानी से रिश्वत देकर व्यापार कर रही है ऐसे में यह कानून अमरिकी व्यापारियों को वैश्विक स्तर की प्रतिस्पर्द्धा में कमजोर बना रहा है। ट्रंप ने इस कानून को ‘जिम्मी कार्टर की बेकार योजना’ बताया और कहा कि इससे अमेरिकी कंपनियों को बड़ा नुकसान हो रहा है। अब अमरीकी कंपनियों के खिलाफ एफसीपीए के तहत मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएंगे। यानी अब अमेरिकी कंपनियां विदेशी अधिकारियों को रिश्वत देकर अपने सौदे पक्के कर सकती हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति इस समय महाशक्ति होने के नाते दुनिया के सामने स्वयं को आदर्श के रूप में प्रस्तुत करने के बजाय व्यापार और व्यवसाय के क्षेत्र में अपने देश का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं, अपने इन प्रयासों के तहत वे अपने देश के व्यापारियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि अगर वे दुनिया के अन्य देशों में रिश्वत देकर व्यवसाय हासिल करते हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। ट्रम्प के इस निर्णय का सीधा-सीधा संकेत समझा जा सकता है कि रिश्वतखोरी और रिश्वतखोरों को सुधारा नहीं जा सकता, इसलिए रिश्वत-रिश्वतखोरी-रिश्वतखोरों का रोना रोने से अच्छा है कि रिश्वत को मान्यता ही दे दी जाए।
ट्रम्प के इस ट्रम्प कार्ड ने बिटवीन द लाइन्स बहुत सारी बात कह दी है। जो लोग रिश्वत खाकर खुद को व्हाइट कॉलर होने का दिखावा करते हैं, उन पर भी सीधी-सीधी चोट कर दी गई है। महाशक्ति ने स्वीकार कर लिया है कि रिश्वतखोरी होती ही है, ऐसे में कोई दिखावा करने वाली बात है ही नहीं। आम जनता तो बोलती ही है, अब संवैधानिक पद पर चुने हुए नेता भी बोल रहे हैं तो उसके मायने साफ हैं, डील अब सीधी-सीधी कर लो। ट्रम्प के संकेत स्पष्ट हैं कि सारे काम इसी तरह हो रहे हैं, फिर शर्माना कैसा।
लेकिन, ट्रम्प ने अपने देश के व्यापारियों को रिश्वत का ट्रम्प कार्ड अमरीका से बाहर खेलने के संकेत दिए हैं। अमरीका के भीतर रिश्वतखोरी को ट्रम्प शायद ही बर्दाश्त करें। इसकी बानगी उनके पीछे-पीछे आए मस्क के बयान से भी समझी जा सकती है। अमरीका में डिपार्टमेंटऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (डीओजीई) के प्रमुख एलन मस्क ने ट्रम्प के रिश्वत वाले निर्णय के एक दिन बाद व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस में सरकार पर हावी नौकरशाही को कठघरे में खड़ा किया। मस्क ने कहा कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार के स्थान पर वास्तव में ब्यूरोक्रेसी सरकार चलाती रही है। अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के बाद पावरफुल माने जाने वाले एलन मस्क का यह बयान भी बड़े संकेत दे गया है। जब अमरीका में ही शीर्ष नेतृत्व ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर ऐसी धारणा बयां की है, तब अन्य देशों की स्थिति पर चर्चा शुरू होनी ही है।
अब तक आम आदमी ही पीड़ा में इस तरह की बातें करता रहा है, इस देश को जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि ईस्ट इंडिया कम्पनी के बाद आईएएस और आरएएस नाम की कम्पनियां चला रही हैं। रियासतकाल में सिर्फ 565 रियासतों के राजा ही वीआईपी होते थे, अब तो हर छोटा-मोटा अफसर वीआईपी है। अफसर तो अफसर, उनका परिवार भी वीआईपी ही होता है। इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है किसी बड़े मंदिर में लगी दर्शनार्थियों की कतार के बीच अफसरों के परिवारजनों का पुलिस सुरक्षा में बेधड़क आगे पहुंच जाना। आम आदमी यह नजारा आए दिन देखता है।
शायद इन्हीं परिस्थितियों को विश्व की महाशक्ति के नेताओं ने समझा और रिश्वतखोरी और नौकरशाही को चर्चा के केन्द्र में ला दिया है। समझना मुश्किल नहीं है कि अब रिश्वतखोर को आम आदमी खुलेआम भ्रष्ट कह दे तो आश्चर्य नहीं होगा, आम आदमी यह तर्क दे सकता है कि भई, कष्ट क्यों हो रहा है, अब तो अमरीका ने खुले आम रिश्वत देने की बात कह दी है। अब तक अंडर द टेबल की इबारत यूज की जाती थी, अब तो टेबल के ऊपर ही डील हो जाएगी। लेकिन, ऊपर द टेबल में मजा यह भी आ सकता है कि रिश्वत की बोली लगे। मसलन किसी ठेके को लेने के लिए न्यूनतम रिश्वत निर्धारित कर दी जाए और उसके बाद ठेका प्राप्त करने के इच्छुक आवेदक उसके ऊपर बोली लगाएं, जिसकी सबसे ज्यादा होगी, उसे ठेका दे दिया जाएगा।
वैसे, यदि इस परम्परा को ओपन करने के साथ अधिकतम बोली को कार्यादेश की अनुमानित लागत में अतिरिक्त जोड़ने की नीति बना ली जाए तो और भी अच्छा रहेगा, कम से कम किए जाने वाली कार्य की गुणवत्ता बरकरार रहेगी। इससे अब तक जो जनतो को दोहरा नुकसान हो रहा था वह नहीं होगा।
दोहरे नुकसान को भी समझ लीजिये। कहावत तो सुनी ही होगी, तेल तो तिलों में से ही निकलता है। रिश्वत देने वाला कार्य की गुणवत्ता के साथ समझौता करके ही इसकी भरपाई करता था। रिश्वत भी जनता के आयकर से दिया जाने वाला हिस्सा होती है और उसी आयकर से बनने वाली सड़क, पुल या अन्य वस्तु की गुणवत्ता में समझौता भी जनता ही भुगतती है। अब यदि, रिश्वत को ओपन डोमेन में ला दिया जाए और अनुमानित लागत में जोड़ने का प्रावधान कर दिया जाए तो गुणवत्ता के साथ समझौता नहीं होगा और जनता को रिश्वत और गुणवत्ता दोनों के बजाय सिर्फ रिश्वत का ही भार झेलना होगा।
ट्रम्प एक महाशक्ति का नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने कोई भी बात ऐसे ही नहीं कह दी होगी। साफ जाहिर है कि उन्हें पता होगा कि वेतन और रिश्वतखोरी में क्या अंतर्सम्बंध हैं। अचानक कोई सामान्य से सरकारी वेतन वाला कुछ ही वर्षों में एसयूवी, बंगले का मालिक कैसे बन रहा है। कैसे एक सामान्य से सरकारी वेतन वाले के बच्चे लाखों की फीस वाले महंगे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। बात इतनी ही नहीं है, संवैधानिक नियमावली की पालना करना सामान्य नागरिक का ही कर्तव्य बन गया है, सरकारी कार्मिक से लेकर सरकार तक के पास उस नियमावली में गली निकालने की पूरी छूट है। और तो और अब पब्लिक डोमेन में विजिलेंस डिपार्टमेंट पर ही एक और गोपनीय विजिलेंस विभाग की आवश्यकता की बातें होने लगी है, लेकिन नैतिकता की गारंटी यहां भी कहां है?
अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प और एलन मस्क के रिश्वत व हावी ब्यूरोक्रेसी पर बयानों को सामान्य समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह रिश्वतखोरी और नौकरशाही पर बड़ा प्रहार साबित हो या न हो, भारत जैसे देशों के लिए यह आंखें खोलने का वक्त है। भारत में भी रिश्वतखोरी के मामलों की कोई कमी नहीं है। यदि अमरीकी कम्पनियों को छूट मिल गई है तो वे भारत में भी रिश्वत देकर अपना काम निकालने का प्रयास करेंगी ही, ऐसे में अगर भारत में भी ऐसे कानूनों को कमजोर किया गया, तो भ्रष्टाचार बढ़ने की आशंका के साथ देश के व्यापार जगत को नुकसान के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे जैसी स्थिति बन सकती है। यूरोपीय संघ ने भी इस फैसले की आलोचना की है और कहा कि यह वैश्विक व्यापार के लिए खतरनाक हो सकता है।
इस पूरे प्रकरण से भी यदि वैश्विक स्तर पर रिश्वतखोरी के खिलाफ नौकरशाही में नैतिकता जाग जाए तो बेहतर है, इस पर वृहद चर्चा का समय आ गया है। आम आदमी भी यही चाहता है कि रिश्वतखोरी और इंस्पेक्टर राज पर सरकार बोलने वालों को अभयदान दे, वर्ना सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों के व्यापार और राष्ट्रीय सुरक्षा में सेंध लगते देर नहीं लगेगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनीता