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मंगला गौरी व्रत कथा: सावन में विशेष महत्व और आस्था का चमत्कार

मंगला गौरी व्रत कथा सावन माह में विशेष महत्व रखती है। यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए फलदायी माना जाता है, जो पति की लंबी उम्र और सुख-शांति की कामना करती हैं। इस कथा में एक साहूकार की पत्नी की श्रद्धा से उसके पति की मृत्यु का श्राप टल जाता है। जानें इस व्रत के पीछे की पौराणिक कथा और इसके महत्व के बारे में।
 

मंगला गौरी व्रत कथा का महत्व

Mangala Gauri Vrat Katha sawan: मंगला गौरी व्रत कथा का सावन माह में विशेष महत्व है। जानिए कैसे इस व्रत के पुण्य से एक युवक की अल्पायु टल गई और माता पार्वती की कृपा से सुख-शांति प्राप्त हुई।


सावन के दूसरे मंगलवार को मनाया जाने वाला मंगला गौरी व्रत विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह व्रत न केवल पति की लंबी उम्र की कामना करता है, बल्कि जीवन की अनेक बाधाओं को भी दूर करता है।


इस व्रत की पौराणिक कथा में बताया गया है कि कैसे एक महिला की श्रद्धा ने उसके पति को निश्चित मृत्यु से बचा लिया। मंगला गौरी व्रत कथा आज भी करोड़ों महिलाओं की आस्था का केंद्र बनी हुई है।


मंगला गौरी व्रत का महत्व

Mangala Gauri Vrat Katha: मंगला गौरी व्रत का महत्व


सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, लेकिन मंगलवार को पड़ने वाला मंगला गौरी व्रत खासतौर पर विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है।


इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए उपवास रखती हैं। मान्यता है कि जो स्त्रियां इस व्रत को सच्ची आस्था से करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य और मनचाहा फल प्राप्त होता है।


इस व्रत की एक पौराणिक कथा है, जो न केवल भक्ति भाव सिखाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि श्रद्धा और धर्म के बल पर जीवन की सबसे बड़ी चुनौतियां भी आसान हो सकती हैं।


साहूकार के घर की अधूरी खुशियाँ

साहूकार के घर की अधूरी खुशियाँ


एक समय की बात है, एक धनवान साहूकार और उसकी पत्नी संतान की इच्छा में दुखी थे। सब कुछ होते हुए भी संतान की कमी उन्हें कचोटती थी। एक दिन एक साधु के आगमन पर उन्होंने अपनी व्यथा बताई।


साधु ने उन्हें सावन के मंगलवार को मंगला गौरी व्रत रखने की सलाह दी। साहूकार की पत्नी ने श्रद्धा से व्रत शुरू किया और कुछ महीनों तक यह व्रत पूरी निष्ठा से करती रहीं।


माता पार्वती उनकी श्रद्धा से प्रसन्न होकर भगवान शिव से वरदान दिलवाती हैं कि उन्हें संतान की प्राप्ति हो। लेकिन एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना के चलते पुत्र को 21 वर्ष की उम्र में मृत्यु का श्राप भी लग जाता है।


जब सर्प आया प्राण लेने

जब सर्प आया प्राण लेने


साहूकार का पुत्र बड़ा होता है और विवाह योग्य आयु में पहुंचता है। उसका विवाह एक ऐसी कन्या कमला से होता है, जो स्वयं भी मंगला गौरी व्रत करती थी। विवाह के बाद भी वह यह व्रत श्रद्धा से करती रही।


एक दिन माता पार्वती स्वयं कमला को स्वप्न में आकर बताती हैं कि एक सर्प अगले मंगलवार उसके पति की जान लेने आएगा। माता उसे उपाय बताती हैं एक प्याले में मीठा दूध और पास में एक खाली मटकी रखने को कहती हैं।


सर्प आकर दूध पीता है और मटकी में चला जाता है, जिसे कमला ढककर जंगल में रख देती है।


इस तरह कमला की श्रद्धा और माता की कृपा से उसके पति की मृत्यु टल जाती है और श्राप मुक्त हो जाता है।


जब आस्था ने बदल दी किस्मत

जब आस्था ने बदल दी किस्मत


जब यह चमत्कार सबको पता चलता है तो पूरे गांव में कमला की भक्ति की चर्चा होती है। साहूकार और उसकी पत्नी अपने बेटे और बहू को आशीर्वाद देते हैं।


इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि मंगला गौरी व्रत न केवल श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि इससे वास्तविक जीवन में भी आश्चर्यजनक परिवर्तन संभव हैं।