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सावन में घेवर: स्वाद और सेहत का अनोखा संगम

सावन का महीना आते ही घेवर की मिठास हर किसी को आकर्षित करती है। यह पारंपरिक मिठाई न केवल त्योहारों का हिस्सा है, बल्कि इसके स्वास्थ्य लाभ भी हैं। जानिए क्यों सावन में घेवर बनाना और खाना महत्वपूर्ण है, इसके पीछे की वैज्ञानिक और ऐतिहासिक वजहें क्या हैं, और कैसे यह मिठाई राजस्थान से उत्तर भारत में फैल गई है।
 

घेवर का महत्व सावन में

सावन का महीना आते ही शिव भक्त भगवान शिव की पूजा में लीन हो जाते हैं, वहीं बाजारों में घेवर की मिठास हर किसी को आकर्षित करती है। सुनहरे जालीदार घेवर की खुशबू हलवाइयों की दुकानों से लोगों को अपनी ओर खींचती है। यह पारंपरिक मिठाई हरियाली तीज और रक्षाबंधन जैसे त्योहारों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुकी है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सावन में ही घेवर क्यों बनाया और खाया जाता है? इसके पीछे केवल स्वाद नहीं, बल्कि स्वास्थ्य से जुड़ी कई वैज्ञानिक और ऐतिहासिक कारण भी हैं।


सावन में घेवर बनाने का कारण

मान्यता है कि मानसून के दौरान हवा में नमी बढ़ जाती है, जिससे वात और पित्त की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। ऐसे में घेवर में उपयोग किए जाने वाले घी, नींबू और चाशनी की अम्लीयता शरीर को संतुलित रखने में मदद करती है। इसे विशेष तरीके से फर्मेंट करके बनाया जाता है, जिससे यह पाचन के लिए भी लाभकारी होता है।


घेवर के स्वास्थ्य लाभ

घेवर न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि सीमित मात्रा में इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें मौजूद तत्व पाचन क्रिया को सुधारते हैं और मानसून में होने वाले पेट के संक्रमण से भी सुरक्षा प्रदान करते हैं। इसलिए, सावन के महीने में घेवर खाना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी है।


घेवर का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

घेवर के इतिहास के बारे में कई धारणाएं हैं। कुछ खाद्य इतिहासकारों का मानना है कि यह मिठाई पर्शिया से मुगलों के साथ भारत आई थी, जबकि कुछ इसे ईरानी व्यंजनों से प्रभावित मानते हैं। हालांकि, कोई ठोस प्रमाण नहीं हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि घेवर का भारत में एक पुराना इतिहास है और यह सदियों से भारतीय मिठाई परंपरा का हिस्सा रहा है।


राजस्थानी परंपरा से जुड़ाव

घेवर का गहरा संबंध राजस्थान से है। हरियाली तीज के अवसर पर इसे विशेष रूप से सिंजारे के रूप में भेजा जाता है। माना जाता है कि आमेर के राजाओं द्वारा त्योहारों पर सांभर से घेवर मंगवाया जाता था। जब जयपुर की स्थापना हुई, तब विभिन्न क्षेत्रों से कारीगरों को बुलाकर घेवर बनाने की परंपरा शुरू हुई। आज भी जयपुर और पूरे राजस्थान में घेवर को उत्सवों की शान माना जाता है।


राजस्थान से उत्तर भारत में फैलती मिठास

समय के साथ, घेवर की मिठास राजस्थान से निकलकर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, दिल्ली और हरियाणा तक फैल चुकी है। सावन के महीने में हर मिठाई की दुकान पर घेवर की मांग सबसे अधिक होती है। इसकी लोकप्रियता ने इसे पारंपरिक के साथ-साथ व्यावसायिक रूप से भी एक सफल मिठाई बना दिया है।