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Vat Purnima 2025: जानें इस खास दिन का महत्व और तर्पण की विधि

Vat Purnima 2025 का दिन हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। इस दिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जबकि श्रद्धालु अपने पूर्वजों को तर्पण और पिंडदान देकर मोक्ष की कामना करते हैं। जानें इस दिन का शुभ मुहूर्त, तर्पण और पिंडदान की विधि, और वैवाहिक सुख के लिए क्या उपाय करें। इस लेख में वट पूर्णिमा के महत्व और धार्मिक कार्यों की जानकारी दी गई है।
 

Vat Purnima 2025: महत्व और अनुष्ठान

Vat Purnima 2025: हिंदू धर्म में ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन को वट पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है, जब महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा करती हैं। इसके साथ ही, कई श्रद्धालु अपने पूर्वजों को तर्पण और पिंडदान देकर मोक्ष दिलाने का प्रयास करते हैं।

हालांकि पितृ पक्ष के लिए श्राद्ध कर्मों का विशेष महत्व है, लेकिन वट पूर्णिमा का दिन भी पूर्वजों के लिए धार्मिक कार्य करने के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा से किए गए तर्पण और पिंडदान से न केवल पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है, बल्कि पूर्वजों की आत्मा को शांति और सद्गति भी प्राप्त होती है।


शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि 10 जून को सुबह 11:35 बजे से शुरू होगी और 11 जून को दोपहर 1:13 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, व्रत और पितरों के लिए कर्म करने का सबसे उत्तम समय 10 जून को माना जा रहा है।


तर्पण और पिंडदान का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, श्रद्धा से किए गए तर्पण और पिंडदान से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। इससे वे अगले लोक में सद्गति प्राप्त करते हैं और अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, और खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं। यह कर्म पितृ दोष से मुक्ति का एक महत्वपूर्ण उपाय भी माना जाता है।


तर्पण और पिंडदान की विधि

  1. वट पूर्णिमा के दिन सुबह स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।

  2. सूर्यदेव को जल अर्पित करें और पूर्वजों का ध्यान करें।

  3. एक साफ तांबे के बर्तन में गंगाजल, काले तिल, जौ, सफेद चंदन और कुशा रखें।

  4. घर के आंगन, वट वृक्ष के पास, नदी या तालाब के किनारे दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।

  5. हाथ में सामग्री लेकर गोत्र और पूर्वज का नाम लेते हुए आह्वान करें: "गोत्रे अस्माकं अमुक शर्मणः वसुरूपणाम् श्राद्धं तिलोदकम् दातुं नमः."

  6. अंजुलि से जल को धीरे-धीरे दक्षिण दिशा में गिराएं।

  7. यह जल 'पितृ तीर्थ' से अर्पित करें।

  8. प्रत्येक पितर के नाम पर कम से कम तीन बार जल अर्पण करें।

  9. "ॐ पितृभ्यः नमः" या "ॐ सर्वेभ्यो पितृभ्यः नमः" मंत्र का जप करें।


पिंडदान के समय ध्यान रखने योग्य बातें

  • थोड़ा पका चावल, काले तिल, दूध, शहद और गंगाजल लेकर पिंड बनाएं।

  • पिंड को किसी साफ पत्ते या थाली में रखें।

  • पूर्वजों का स्मरण कर इसे गाय को खिला दें। गाय न हो तो इसे किसी पवित्र नदी में प्रवाहित करें या पीपल के पेड़ के नीचे रखें।

  • यदि पूर्ण विधि संभव न हो, तो यह सांकेतिक विधि भी प्रभावी मानी जाती है।


वैवाहिक सुख और पितृ कृपा के लिए उपाय

वट पूर्णिमा के दिन दोपहर में पीपल के पेड़ पर जल अर्पित करें, सात परिक्रमा करें और दीपक जलाएं। पीपल में पितरों का वास माना जाता है। वट वृक्ष की पूजा करते समय पितरों का स्मरण करें और उनके आशीर्वाद की कामना करें। यदि स्वयं से यह विधि न हो पाए, तो किसी योग्य ब्राह्मण से तर्पण, दान या श्राद्ध करवा सकते हैं।