अहोई अष्टमी 2025: हिसार में चांद निकलने का समय और पूजा विधि
अहोई अष्टमी का परिचय
अहोई अष्टमी, जिसे अहोई आठे के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व माताओं द्वारा अपने बच्चों की भलाई और समृद्धि के लिए मनाया जाता है। पहले यह व्रत केवल बेटों के लिए रखा जाता था, लेकिन अब माताएं अपने बेटों और बेटियों दोनों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए इसे मनाती हैं। यह पर्व दीवाली से आठ दिन पहले और करवा चौथ के चार दिन बाद आता है, और उत्तर भारत में इसे करवा चौथ की तरह ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
अहोई अष्टमी 2025 का व्रत
2025 में अहोई अष्टमी 13 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन माताएं सूर्योदय से लेकर सांझ तक कठोर व्रत रखती हैं, जिसमें कई माताएं पानी भी नहीं पीतीं। व्रत का पारण सांझ में तारे दिखने के बाद किया जाता है। कुछ परंपराओं में चंद्रमा के उदय के बाद व्रत खोला जाता है, लेकिन चंद्रमा के देर से निकलने के कारण यह थोड़ा कठिन हो सकता है।
हिसार में चांद और तारे देखने का समय
अहोई अष्टमी 2025 के लिए पूजा और अन्य अनुष्ठानों का शुभ समय इस प्रकार है:
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त: शाम 6:07 से 7:19 तक
गोवर्धन राधा कुंड स्नान: 13 अक्टूबर, 2025
सांझ में तारे देखने का समय: शाम 6:28
कृष्ण दशमी चंद्रोदय: 14 अक्टूबर को रात 12:09
अहोई अष्टमी मनाने की विधि
अहोई अष्टमी का व्रत माताओं के लिए बच्चों की सलामती का एक पवित्र अवसर है। इस दिन निम्नलिखित विधि से व्रत और पूजा करें:
सुबह जल्दी उठकर अहोई माता को प्रणाम करें और व्रत का संकल्प लें। सूर्योदय से सांझ तक कठोर व्रत रखें, जिसमें खाना और पानी से परहेज किया जाता है। पूजा स्थल पर चौकी या वेदी सजाएं और उस पर अहोई माता और बच्चों की तस्वीर रखें। शुभ मुहूर्त (शाम 6:07 से 7:19) में पूजा करें और सांझ में तारे देखने के बाद व्रत खोलें। अतिरिक्त आशीर्वाद के लिए गोवर्धन स्नान या राधा कुंड स्नान जैसे अनुष्ठान करें।
अहोई अष्टमी का महत्व
अहोई अष्टमी मां के अपने बच्चों के प्रति प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। यह पर्व देखभाल, सुरक्षा और आशीर्वाद का संदेश देता है। पूरी श्रद्धा के साथ व्रत और पूजा करने से बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य, समृद्धि और लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। यह त्योहार मातृ प्रेम और आस्था से भरी परंपरा को जीवंत रखता है।