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आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत: महत्व और पूजा विधि

आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि जानें। इस दिन भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष पूजा की जाती है। जानें इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा और शुभ मुहूर्त।
 

आषाढ़ भौम प्रदोष का महत्व

आज आषाढ़ भौम प्रदोष का पर्व है। इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है। आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत के दौरान संध्या समय की पूजा का विशेष महत्व है। आइए, हम आपको इस व्रत के महत्व और पूजा विधि के बारे में जानकारी देते हैं। 


आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत की जानकारी

'प्रदोष' का अर्थ है रात्रि का शुभारंभ। यह व्रत रात के समय किया जाता है, इसलिए इसे प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत 8 जुलाई को है। यह व्रत संतान की सुरक्षा और उनकी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किया जाता है। इसे स्त्री और पुरुष दोनों कर सकते हैं। सनातन धर्म में इस व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन शिव परिवार की पूजा करना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस दिन विधिपूर्वक भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने से सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है।


भौम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा

भौम प्रदोष व्रत से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। एक वृद्धा थी, जो भौम देवता (मंगल देवता) को अपना इष्ट मानकर उनका व्रत करती थी। उसका एक पुत्र था, जो मंगलवार को जन्मा था, इसलिए उसे मंगलिया कहा जाता था। मंगलवार को वह घर की सफाई नहीं करती थी। एक दिन मंगल देवता उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने के लिए साधु का रूप धारण कर उसके घर आए। साधु ने कहा कि उसे भोजन चाहिए। वृद्धा ने कहा कि वह मंगलवार का व्रत कर रही है, इसलिए वह घर नहीं लीप सकती। साधु ने कहा कि वह गोबर से ही लिपे चौके पर खाना बनाता है। वृद्धा ने कहा कि वह अन्य कोई सेवा कर सकती है। साधु ने कहा कि वह उसके बेटे को बुलाकर आंधा लिटा दे। वृद्धा ने ऐसा किया और साधु ने उसके बेटे की पीठ पर भोजन बनाया। जब भोजन तैयार हुआ, तो साधु ने कहा कि अब बेटे को बुलाओ। वृद्धा ने आश्चर्य व्यक्त किया, लेकिन साधु के आग्रह पर बेटे को बुलाया। साधु ने कहा कि उसका व्रत सफल हो गया है और उसे कभी कोई कष्ट नहीं होगा।


भौम प्रदोष व्रत का महत्व

प्रदोष व्रत हर महीने आता है, लेकिन मंगलवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को 'भौम' कहा जाता है। इस व्रत से भूमि, भवन और ऋण संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। यह व्रत करने से शारीरिक बल भी बढ़ता है और मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहते हैं।


आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 07 जुलाई को रात 11:10 बजे शुरू होगी और 09 जुलाई को रात 12:38 बजे समाप्त होगी। इस दिन शिव जी की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07:23 बजे से 09:24 बजे तक है। इस दिन पूजा-अर्चना किसी भी समय की जा सकती है।


आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत के दिन ध्यान रखने योग्य बातें

प्रदोष व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और महादेव की पूजा करें। सूर्य देव को अर्घ्य दें और सात्विक भोजन करें। शिवलिंग का विशेष अभिषेक करें और दान करें। पूजा के दौरान शिव मंत्रों और शिव चालीसा का पाठ करें।


आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत की पूजा विधि

आषाढ़ भौम प्रदोष व्रत के दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र पहनें और व्रत का संकल्प लें। संध्या समय प्रदोष काल में भगवान शिव का अभिषेक करें। उन्हें जल, दूध, दही, शहद और गंगाजल से स्नान कराएं। बेलपत्र, अक्षत, फूल और धूप-दीप अर्पित करें। महामृत्युंजय मंत्र या 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें। प्रदोष व्रत कथा का श्रवण करें और भगवान से अपनी समस्याओं के निवारण की प्रार्थना करें।