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उत्पन्ना एकादशी: जानें व्रत के दौरान किन गलतियों से बचें

उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन देवी एकादशी का प्रकट होना और भगवान विष्णु द्वारा असुर मुर का वध किया जाना महत्वपूर्ण है। व्रत के दौरान चावल का सेवन, तामसिक भोजन, और अन्य गलतियों से बचना आवश्यक है। जानें इस दिन के महत्व और व्रत के नियमों के बारे में।
 

उत्पन्ना एकादशी का व्रत 15 नवंबर को


उत्पन्ना एकादशी का महत्व


पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उत्पन्ना एकादशी का दिन देवी एकादशी के प्रकट होने का दिन है, जब भगवान विष्णु ने असुर मुर का वध किया था। इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और पापों का नाश होता है। यह एकादशी विशेष रूप से मोक्ष और सुख-समृद्धि की कामना करने वालों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।


उत्पन्ना एकादशी की तिथि


पंचांग के अनुसार, एकादशी तिथि 15 नवंबर, शनिवार को सुबह 12:49 बजे से शुरू होगी और 16 नवंबर, रविवार को सुबह 02:37 बजे समाप्त होगी। चूंकि एकादशी तिथि सूर्योदय के समय शुरू हो रही है, इसलिए व्रत 15 नवंबर को रखा जाएगा।


व्रत के दौरान ध्यान रखने योग्य बातें



  • चावल का सेवन: एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। इसके बजाय फल, दूध, या सात्विक आहार जैसे कुट्टू और साबूदाना का सेवन करें।

  • तामसिक भोजन से बचें: व्रत के एक दिन पहले से लेकर द्वादशी तक, लहसुन, प्याज, मांसाहार और शराब का सेवन न करें।

  • ब्रह्मचर्य का पालन: इस दिन मानसिक और शारीरिक रूप से शुद्ध रहना आवश्यक है। क्रोध और बुरे विचारों से दूर रहें।

  • बाल और नाखून न काटें: इस दिन बाल कटवाना और नाखून काटना अशुभ माना जाता है।

  • पारण का सही समय: व्रत का पारण द्वादशी तिथि में ही करना चाहिए। पंचांग देखकर शुभ मुहूर्त जानें।


उत्पन्ना एकादशी का महत्व


एकादशी तिथि का विशेष महत्व है, जो भगवान विष्णु को समर्पित है। यह दिन देवी एकादशी के जन्म का प्रतीक है, जिसने असुर मुर का वध किया। इसलिए इसे अत्यंत पुण्यदायिनी माना जाता है।