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कजरी तीज: सुहागिनों के लिए विशेष पर्व और पूजा विधि

कजरी तीज, जो हरियाली तीज के बाद आती है, विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं। जानें इस पर्व की तिथि, पूजा विधि, और इसके पीछे की मान्यता। इस दिन विशेष शुभ योग भी बनते हैं, जो पूजा के फल को बढ़ाते हैं। कजरी तीज का व्रत रखने से सुहागिन महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
 

कजरी तीज का महत्व

कजरी तीज, जो हरियाली तीज के बाद आती है, विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन, महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं। इसे सातूड़ी तीज या बड़ी तीज भी कहा जाता है। इस पर्व पर सुहागिनें अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाए जाने वाले इस त्योहार की तिथि 12 अगस्त है।


कजरी तीज की तिथि और शुभ योग

ज्योतिषाचार्य डॉ. अनीष व्यास के अनुसार, भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि 11 अगस्त को सुबह 10:33 बजे शुरू होगी और 12 अगस्त को सुबह 8:40 बजे समाप्त होगी। इस दिन विशेष शुभ योग भी बनते हैं, जैसे सर्वार्थ सिद्धि योग, जो पूजा के फल को बढ़ाता है।


पूजन विधि और व्रत नियम

कजरी तीज पर महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, लेकिन गर्भवती महिलाएं फलाहार कर सकती हैं। पूजा विधि में नीमड़ी माता को जल और चावल चढ़ाना शामिल है। इस दिन गाय की पूजा भी की जाती है, जिसमें आटे की रोटियां बनाकर गाय को खिलाया जाता है।


कजरी तीज की कथा

कजरी तीज की एक प्रसिद्ध कथा है जिसमें एक गरीब ब्राह्मण की पत्नी ने इस व्रत को रखा। ब्राह्मण ने अपनी पत्नी की इच्छा पूरी करने के लिए साहूकार से सत्तू लाने की कोशिश की। इस कथा से यह संदेश मिलता है कि सच्चे प्रेम और श्रद्धा से की गई पूजा का फल अवश्य मिलता है।


कजरी तीज का उद्देश्य

यह पर्व माता पार्वती को समर्पित है, जो अपने पति भगवान शिव के साथ प्रेम और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।