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करवा चौथ व्रत कथा: अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करें पाठ

करवा चौथ का व्रत विशेष रूप से पतियों की लंबी उम्र के लिए मनाया जाता है। इस दिन करवा माता की पौराणिक कथा का पाठ करना आवश्यक है। जानें करवा चौथ की दो महत्वपूर्ण कथाएं, जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती हैं। कैसे करवा ने अपने पति की रक्षा की और वीरवती ने अपनी तपस्या से अपने पति को पुनः प्राप्त किया। इस व्रत के माध्यम से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति की जा सकती है।
 

अखंड सौभाग्य का वरदान


करवा चौथ का व्रत
आज करवा चौथ का व्रत मनाया जा रहा है, जो विशेष रूप से महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए करती हैं। इस व्रत के माध्यम से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। करवा माता की पौराणिक कथा का पाठ करना इस दिन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।


करवा चौथ व्रत की कथा

प्राचीन काल में एक गांव में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री रहती थी। एक दिन उसका पति स्नान के लिए नदी में गया, जहां एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। पति की आवाज सुनकर करवा नदी के किनारे पहुंची और उसने मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया।


करवा यमराज के पास गई और कहा कि उसके पति को मगरमच्छ ने पकड़ लिया है। यमराज ने कहा कि वह ऐसा नहीं कर सकते क्योंकि मगरमच्छ की आयु अभी बाकी है। करवा ने यमराज को श्राप देने की धमकी दी, जिससे यमराज ने मजबूर होकर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु का आशीर्वाद दिया।


करवा चौथ की दूसरी कथा

शाकप्रस्थपुर में एक ब्राह्मण की पुत्री वीरवती ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। चंद्रोदय के बाद ही भोजन करने का नियम था, लेकिन भूख के कारण वह व्याकुल हो गई। उसके भाइयों ने चंद्रोदय दिखाने के लिए आतिशबाजी की, जिससे वीरवती का व्रत बिना चंद्रोदय के ही पूरा हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो गई।


वीरवती ने बारह महीने तक हर चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुनः जीवित हो गया।