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कर्नाटक सरकार के दशहरा उत्सव में बानु मुश्ताक की नियुक्ति पर विवाद

कर्नाटक सरकार ने बानु मुश्ताक को दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए चुना है, जिस पर पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा ने कड़ी आपत्ति जताई है। सिम्हा ने बानु की साहित्यिक उपलब्धियों की सराहना की, लेकिन उनकी नियुक्ति को अनुचित ठहराया। उन्होंने इस परंपरा के धार्मिक महत्व और सांस्कृतिक पहचान पर सवाल उठाए हैं। इस निर्णय ने दशहरा उत्सव के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व को लेकर नई बहस को जन्म दिया है।
 

दशहरा उत्सव में बानु मुश्ताक की भूमिका पर उठे सवाल

कर्नाटक सरकार ने इस वर्ष के दशहरा उत्सव के उद्घाटन के लिए लेखिका बानु मुश्ताक को चुनने का निर्णय लिया है, जिस पर पूर्व सांसद प्रताप सिम्हा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। सिम्हा ने बानु की साहित्यिक उपलब्धियों की सराहना करते हुए भी उनकी नियुक्ति को अनुचित बताया।


सिम्हा ने मीडिया से बातचीत में कहा, “दशहरा केवल धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक नहीं है; यह मां चामुंडेश्वरी का धार्मिक उत्सव है। इसकी परंपरा वाडियार राजवंश द्वारा शुरू की गई थी, और उत्सव की शुरुआत देवी की पूजा से होती है।” उन्होंने सरकार के निर्णय पर सवाल उठाते हुए कहा, “यह भक्ति का उत्सव है। यदि उद्घाटन मां चामुंडेश्वरी की पूजा का प्रतीक है, तो बानु मुश्ताक इस भूमिका के लिए उपयुक्त कैसे हो सकती हैं?”


वैचारिक मतभेदों का मुद्दा


सिम्हा ने वैचारिक मतभेदों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “इस्लाम में कहा गया है कि अल्लाह के अलावा कोई भगवान नहीं है। क्या बानु, जो एक मुस्लिम हैं, मां चामुंडेश्वरी को दैवीय मान सकती हैं?” उनके इस बयान ने दशहरा जैसे पारंपरिक धार्मिक उत्सव में धर्मनिरपेक्षता और सांस्कृतिक पहचान के मुद्दे को और जटिल बना दिया है।


सरकार के निर्णय पर बहस का आरंभ


कर्नाटक सरकार के इस निर्णय ने दशहरा उत्सव के सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व पर नई बहस को जन्म दिया है। सिम्हा का कहना है कि यह निर्णय परंपराओं के साथ समझौता है, जो मैसूर के ऐतिहासिक और धार्मिक मूल्यों को कमजोर करता है। इस बीच, बानु मुश्ताक की साहित्यिक योग्यता पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन उनकी नियुक्ति ने धार्मिक संवेदनशीलता को लेकर सवाल उठाए हैं।