गुरु नानक पूर्णिमा: मानवता के लिए प्रेरणा का पर्व
गुरु नानक पूर्णिमा, जो गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है, मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन सिख समुदाय और अन्य धर्मों के लोग गुरु जी की शिक्षाओं को याद करते हैं। गुरु नानक देव जी ने समाज में फैले अंधविश्वास और जातिवाद का विरोध किया और समानता, भाईचारे का संदेश दिया। उनके उपदेश आज भी प्रासंगिक हैं। जानें इस पर्व के महत्व और गुरु जी के जीवन के बारे में अधिक जानकारी।
Nov 4, 2025, 14:36 IST
गुरु नानक देव जी का जीवन और शिक्षाएँ
भारत की धरती संतों और महापुरुषों की पवित्र भूमि रही है, जहाँ समय-समय पर ऐसे युगपुरुषों का जन्म होता रहा है, जिन्होंने समाज को सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। इनमें से एक महान व्यक्तित्व थे श्री गुरु नानक देव जी, जिनका जन्म दिवस गुरु नानक पूर्णिमा या गुरुपर्व के रूप में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है। उनका जन्म 1469 ईस्वी में पंजाब के तलवंडी में हुआ, जिसे आज ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। उनके पिता का नाम मेहता कालू और माता का नाम माता तृप्ता था। बचपन से ही नानक जी मेधावी, करुणामय और सत्यप्रिय थे, और वे मानवता की सेवा और ईश्वर की भक्ति में लीन रहते थे।
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में समाज में फैले अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक आडंबरों का विरोध किया। उन्होंने कहा था- "एक ओंकार सतनाम" — अर्थात् परमात्मा एक है। उन्होंने तीन मूल सिद्धांत दिए: नाम जपो (ईश्वर का स्मरण करो), किरत करो (ईमानदारी से मेहनत करो), और वंड छको (अपनी कमाई का हिस्सा दूसरों के साथ बाँटो)। गुरु नानक देव जी ने समानता, भाईचारे और सत्य के मार्ग को अपनाने का संदेश दिया। उन्होंने अनेक स्थानों की यात्रा की, जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है, और अपने उपदेशों के माध्यम से प्रेम और मानवता का संदेश फैलाया।
गुरु नानक पूर्णिमा कार्तिक मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन सिख समुदाय और अन्य धर्मों के लोग गुरु जी को श्रद्धा से याद करते हैं। गुरुद्वारों को सजाया जाता है, कीर्तन और लंगर का आयोजन किया जाता है। लोग सुबह-सुबह गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ सुनते हैं और गुरु जी की शिक्षाओं पर चलने का संकल्प लेते हैं।
गुरु नानक देव जी का जीवन मानवता के लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने सिखाया कि सच्चा धर्म वही है जो प्रेम, करुणा और समानता का व्यवहार करे। गुरु नानक पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मिक जागृति का संदेश है। इस दिन हमें उनके उपदेशों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेना चाहिए ताकि समाज में शांति और प्रेम का प्रकाश फैल सके।
गुरुजी के बारे में कई किस्से प्रचलित हैं, लेकिन एक प्रसिद्ध घटना का उल्लेख विशेष रूप से किया जाता है। एक बार नानक जी व्यापार के लिए धन लेकर गए, लेकिन उन्होंने उसे साधुओं के भोज में खर्च कर दिया। इस पर उनके पिता नाराज हुए। बाद में उनका विवाह सुलक्षणा से हुआ और दो पुत्र भी हुए, लेकिन गृहस्थी में उनका मन नहीं लगा। उन्होंने घर छोड़कर देश-विदेश घूमने का निर्णय लिया।
गुरु नानक देव जी ने जात-पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने के लिए 'लंगर' की प्रथा शुरू की। लंगर में सभी लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। आज भी गुरुद्वारों में यह व्यवस्था जारी है, जहाँ सभी को भोजन उपलब्ध होता है। नानक देव जी का जन्मदिन गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता है, और तीन दिन पहले से प्रभात फेरियाँ निकाली जाती हैं। भक्त लोग जगह-जगह पानी और शरबत की व्यवस्था करते हैं।
गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो सदैव प्रासंगिक रहेंगे। उन्होंने कहा कि ईश्वर एक है और उसकी उपासना की जानी चाहिए। उन्होंने ईमानदारी से मेहनत करने और बुरे कार्यों से दूर रहने का उपदेश दिया। उन्होंने सभी स्त्री और पुरुषों को समान माना और कहा कि भोजन शरीर के लिए आवश्यक है, लेकिन लोभ और संग्रहवृत्ति बुरे कर्म हैं।
- शुभा दुबे